1.श्रावण मास का शुभारम्भ होते ही भगवान भोले जो आशुतोष अर्थात शीघ्र प्रसन्न होने वाले हैं,को प्रसन्न करने का विधान प्रारम्भ हो जाता है।घरों में भी प्राय श्रद्धालु शिवालयों में जाकर सावन मास में भगवान शिव का जलाभिषेक,दुग्धाभिषेक,करते हैं। कोई सम्पूर्ण माह व्रत रखता है तो कोई सोमवार को, परन्तु सबसे महत्पूर्ण आयोजन है यात्राएँ जिनका गंतव्य शिव से सम्बन्धित देवालय होते हैं।
2.सम्पूर्ण भारत में भगवान् शिव का जलाभिषेक करने के लिए भक्त अपने कन्धों पर कांवड़ लिए हुए (कांवड़ में कंधे पर बांस तथा उसके दोनों छोरों पर गंगाजली रहती है) गोमुख (गंगोत्री) तथा अन्य समस्त स्थानों पर जहाँ भी पतित पावनी गंगा विराजमान हैं,से जल लेकर अपनी यात्रा के लिए निकल पड़ते हैं.
3.कांवड़ यात्रा वास्तव में एक संकल्प होती है, जो श्रद्धालु द्वारा लिया जाता है। कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ियों द्वारा नियमों का पालन सख्ती से किया जाता है। कांवड़ यात्रियों के लिए किसी भी प्रकार का नशा वर्जित रहता है। इस दौरान तामसी भोजन यानी मांस, मदिरा आदि का सेवन भी नहीं किया जाता।
4.बिना स्नान किए कांवड़ यात्री कांवड़ को नहीं छूते।तेल, साबुन, कंघी करने व अन्य श्रृंगार सामग्री का उपयोग भी कावड़ यात्रा के दौरान नहीं किया जाता। स्त्री,पुरुष,बच्चे ,प्रौढ़ परस्पर एक दूसरे को भोला या भोली कहकर ही सम्बोधित करते हैं.कांवड़ ले जाने के पीछे अपना संकल्प है कुछ लोग "खडी कांवड़ " का संकल्प लेकर चलते हैं,वो जमीन पर कांवड़ नहीं रखते पूरी यात्रा में
5.कांवड़ यात्रा में बोल बम एवं जय शिव-शंकर घोष का उच्चारण करना तथा कांवड़ को सिर के ऊपर से लेने तथा जहां कांवड़ रखी हो उसके आगे बगैर कांवड़ के नहीं जाने के नियम पालनीय होती है। पैरों में पड़े छाले,सूजे हुए पैर,केसरिया बाने में सजे कांवड़ियों का अनवरत प्रवाह चलता ही रहता है अहर्निश ! स्थान -स्थान पर कांवड़ सेवा शिविर आयोजित किये जाते हैं,जिनमें निशुल्क भोजन,जल,चिकित्सा सेवा,स्नान विश्राम आदि की व्यवस्था रहती है।मार्ग स्थित स्कूलों,धर्मशालाओं ,मंदिरों में विश्राम करते हुए ये कांवड़ धारी ,रास्ते में स्थित शिवमंदिरों में पूजार्चना करते हुए नाचते गाते है। बम बम बोले बम भोले की गुंजार के साथ शिवरात्री (श्रावण कृष्णपक्ष त्रयोदशी +चतुर्दशी) को जलाभिषेक करते हैं। देश के अन्य स्थानों में किसी न किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण श्रावण मास में ऐसे ही विशिष्ठ आयोजन रहते हैं।
6.श्रावण मास की शिवरात्रि से लगभग १० -१२ दिन पूर्व से चलने वाला यह जन जनसैलाब आस्था,श्रद्धा विश्वास के सहारे ही अपनी कठिन थकान भरी यात्रा पूरी करता है। अंतिम दो दिन ये यात्रा अखंड चलती है जिसको डाक कांवड़ कहा जाता है। निरंतर जीप,वैन ,मिनी ट्रक ,गाड़ियाँ,स्कूटर्स,बाईक्स आदि पर सवार भक्त अपनी यात्रा अपने घर से गंतव्य स्थान की दूरी के लिए निर्धारित घंटे लेकर चलते हैं। और अपने इष्ट के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं.बहुत सी कांवड़ तो बहुत ही विशाल होती हैं जिनको कई लोग उठाकर चलते हैं। इस तरह कठिन नियमों का पालन कर कांवड़ यात्री अपनी यात्रा पूर्ण करते हैं। इन नियमों का पालन करने से मन में संकल्प शक्ति का जन्म होता है