एक संत सदा प्रसन्न रहते थे | वह हर बात पर हाके लगते रहते , कुछ चोरो को यह बात अजीब सी लगाती थी | वह समझ नही पते थे की कोई व्यक्ति हर समय इतना खुश कैसे रह सकता है | चोरो ने यह सोच कर की संत के पास अपार धन होगा , उनका अपहरण कर लिया | वे उन्हें दूर जंगल में ले गए और बोले, "सुना है संत की तुम्हारे पास काफी धन है तभी इतने प्रसन्न रहते हो| सारा धन हमारे हवाले कर दो वर्ना तुमारी जन की खैर नही |"
संत ने
एक-एक कर हर चोर को अलग-अलग बुलाया और कहा मेरे पास सुखदा मणि है मगर मैंने उसे तुम चोरो के डर से जमीन में गाड़ दिया है | यहाँ से कुछ दूर पर वह स्थान है | अपनी खोपड़ी के नीचे चन्द्रमा की छाया में खोदना, शायद मिल जाए| यह कहकर संत एक पेड़ के नीचे सो गए | सभी चोर अलग-अलग दिशा में जाकर खोदने लगे, जरा सा उ ते चलते तो छाया भी हिल जाती और उन्हें जहा - तहा खुदाई करनी पड़ती |
रात भर में सैकड़ो छोटे-बड़े गढ्ढे बन गये पर कही भी मणि का पता नही चला| चोर हताश होकर लौट आये और संत को बुरा-भला कहने लगे | संत हँस कर बोले "मूर्खो मेरे कहने का अर्थ समझो | खोपड़ी तले सुखदा मणि छिपी है अर्थात श्रेष्ट विचारो के कारण मनुष्य प्रसन्न रह सकता है | तुम भी अपना दृष्टिकोण बदलो और जीना सीखो |" चोरो को यथार्थ का बोध हुआ | वे भी अपनी आदते सुधार कर प्रसन्न रहने की कला सीखने लगे