शहर से दूर एक घने जंगल में एक आम का पेङ था और
एक लंबा और घना नीम का पेङ था | नीम का पेङ
अपने पडोसी पेङ से बात तक नहीं करता था |
उसको अपने बङे होने पर घमंड था |
एक बार एक रानी मधुमख्खी नीम के पेड़ के पास
पहुची और उसने कहाँ “नीम भाई में आपके यहाँ पर
आपने शहद का छत्ता बना लू ” तब नीम के पेड़ ने
कहाँ “नहीं जा जाकर कही और
अपना छत्ता बना ” | इतना सुनकर आम के पेड़ ने
कहाँ “भाई छत्ता क्यों नहीं बना लेने देते यह
तुम्हारे पेड़ पर सुरक्षित रह सकेंगी |” इतने पर नीम
के पेड़ ने आम के पेड़ को जवाब दिया कि मुझे
तुम्हारी सलाह कि आवश्यकता नहीं हें |
रानी मधुमख्खी ने फिर से आग्रह
किया तो भी नीम के पेड़ ने मना कर दिया |
रानी मधुमख्खी आम के पेड़ के पास गई और कहने
लगी क्या मै आपकी शाखा पर
अपना छत्ता बना लूँ | इस पर आम के पेड़ ने उसे
सहमति दे दी रानी मधुमख्खी ने
छत्ता बना लिया और सुखपूर्वक रहने लगी |
अभी कुछ दिनों बाद कुछ व्यक्ति वहाँ पर आये और
कहने लगे कि इस आम के पेड़ को काटते हें तभी एक
व्यक्ति कि नजर मधुमख्खी के छत्ते पर पड़ी और
उसने कहाँ यदि हम इस पेड़ को काटते हें तो यह
मधुमख्खी हमें नहीं छोडेगी | अतः हम नीम के पेड़
को काटते हें | इससे हमको कोई खतरा नहीं हें | और
लकडियां भी हमे अधिक मात्रा में मिल जाएँगी |
यह सब बाते सुनकर नीम डर गया अब वह कर
भी क्या सकता था |
दूसरे दिन सभी व्यक्ति आये और पेड़ काटने लगे
तो नीम ने कहाँ “ मुझे बचाओ – मुझे बचाओ
नही तो ये लोग मुझको काट डालेंगे ”| तब
मधुमख्खियो ने उन लोगों पर हमला कर दिया और
उन्हें वहाँ से भगा दिया |
नीम के पेड़ ने मधुमख्खियो को धन्यवाद
दिया तो इस पर मधुमख्खियो ने कहाँ “धन्यवाद
हमें नही आम भाई को दो यदि वह हमसे नहीं कहते
तो हम आपको नहीं बचाते ”|
सीख...“कभी कभी बड़े और महान होने का एहसास
हमें घमंडी और क्रूर बना देता हें | जिससे हम अपने
सच्चे साथियों से दूर हो जाते हें |”