एक बार राजा शातायुद्ध प्रजा का निरीक्षण करने निकले थे। एक झोपडी में उन्होंने एक वृद्ध को कुछ बच्चो को पढाते देखा तो वे वहां रुक गए।
वह वृद्ध लगभग ७०-८० बर्ष के लग रहे थे, लेकिन उनके उत्साह में कोई कमी नही थी। उन्हें देख कर राजा ने पुछा - बाबा आपकी आयु कितनी है? वृद्ध ने झुकी गर्दन धीरे से उ ाई और आँखों में चमक लाकर मुस्कुराते हुए बोले - मात्र पाँच बर्ष। राजा को विश्वास नही हुआ। उन्होंने फिर से पूछा तो वही उत्तर मिला।
राजा को आश्चर्यचकित देख उन वृद्ध व्यक्ति ने कहा - राजन, मेरा पिछला जीवन तो पशु प्रयोजनों और निजी स्वार्थो में ही निरर्थक चला गया। केवल पाँच बर्ष पूर्व ही मुझे ज्ञान उपजा है और तभी तो मै लोक कल्याणकारी कार्यो और राष्ट्र सेवा में लगा हूँ और राजन अब अपनी सार्थक आयु मैं तभी से गिनता हूँ।
जो आयु परमार्थ और राष्ट्र सेवा के कार्यो से जुड़कर अपने जीवन को सार्थक दिशा दे सका , सही अर्थो में मनुष्य का वही सार्थक आयु है।