धर्मक्षेत्रकुरुक्षेत्र से बहुत रोचक किस्से, ऐतिहासिक घटनाएं व धार्मिक प्रसंग जुडे हुए हैं। इन्हें सुन कर मन श्रद्धाभावसे भर जाता है। ऐसा ही एक पवित्र धाम देवीकूपभद्रकाली मंदिर है। यह ऐतिहासिक मंदिर हरियाणा की एकमात्र सिद्ध शक्तिपीठ है, जहां मां भद्रकाली शक्ति रूप में विराजमान हैं।
वामन पुराण व ब्रह्मपुराणआदि ग्रंथों में कुरुक्षेत्र के सदंर्भमें चार कूपों का वर्णन आता है। जिसमें चंद्र कूप, विष्णु कूप, रुद्र कूप व देवी कूप हैं। श्रीदेवी कूप भद्रकाली शक्तिपीठ का इतिहास दक्षकुमारीसती से जुडा हुआ है। शिव पुराण में इसका वर्णन मिलता है कि एक बार सती के पिता दक्ष प्रजापति ने यज्ञ का आयोजन किया। इस अवसर पर सती व उसके पति शिव के अतिरिक्त सभी देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों को बुलाया गया। जब सती को इस बात का पता चला तो वह अनुचरों के साथ पिता के घर पहुंची। तो वहां भी दक्ष ने उनका किसी प्रकार से आदर नहीं किया और क्रोध में आ कर शिव की निंदा करने लगे। सती अपने पति का अपमान सहन न कर पाई और स्वयं को हवन कुंड में अपने आप होम कर डाला। भगवान शिव जब सती की मृत देह को लेकर ब्राह्मांडमें घूमने लगे तो भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर को 52हिस्सों में बांट दिया। जहां-जहां सती के अंग गिरे वहां-वहां पर शक्ति पीठ स्थापित हुए।
हरियाणा के एकमात्र प्राचीन शक्तिपीठ श्रीदेवी कूप भद्रकाली मंदिर कुरुक्षेत्र के देवी कूप में सती का दायां गुल्फ अर्थात घुटने से नीचे का भाग गिरा और यहां शक्तिपीठ की स्थापना हुई। महाभारत के युद्ध से पूर्व अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण की प्रेरणा से मां भद्रकाली की पूजा की और कहा था कि महादेवी मैंने सच्चे मन से पूजा की है अत:आपकी कृपा से मेरी विजय हो और युद्ध के उपरांत मैं यहां पर घोडे चढाने आऊंगा। शक्तिपीठ की सेवा के लिए श्रेष्ठ घोडे अर्पित करूंगा। श्रीकृष्ण व पांडवों ने युद्ध जीतने पर ऐसा किया था, तभी से मान्यता पूर्ण होने पर यहां श्रद्धालु सोने, चांदी व मिट्टी के घोडे चढाते हैं। मां भद्रकाली की सुंदर प्रतिमा शांत मुद्रा में यहां विराजमान है। हजारों श्रद्धालु प्रतिदिन मां भद्रकाली की पूजा अर्चना व दर्शन करते हैं। मंदिर के बाहर देवी तालाब है। तालाब के एक छोर पर तक्षेश्वरमहादेव मंदिर है। पुराणों में कहा गया है कि भगवान श्रीकृष्ण व बलराम के मुंडन संस्कार यहां पर हुए थे।
रक्षाबंधन के दिन श्रद्धालु अपनी रक्षा का भार माता को सौंप कर रक्षा सूत्र बांधते हैं। मान्यता है कि इससे उसकी सुरक्षा होती है। महाशक्तिपीठमें विशेष उत्सव के रूप में चैत्र व आश्विन के नवरात्रबडी धूमधाम से मनाए जाते हैं।