नवरात्रके इन दिनों में झज्जरस्थित 84घंटे वाली माता भीमेश्वरीदेवी मंदिर की रौनक भी देखते ही बनती है। रोजाना संकीर्तन तो हो ही रहा है, दिल्ली-एनसीआर सहित देश के अन्य हिस्सों से भी यहां खासी संख्या में भक्त पहुंच रहे हैं। मंदिर की खासियत इसके नाम के अनुरूप छोटे बडे 84घंटे ही हैं।
मंदिर के पुजारी पंडित शिवओम भारद्वाज बताते हैं कि इस मंदिर की स्थापना लगभग 250साल पहले हुई थी। मंदिर में स्थापित मां की प्रतिमा भी यहीं पर जमीन के भीतर से निकली थी। पंडित जी के मुताबिक उन के पूर्वज पिछली 10पीढियों से इस मंदिर की सेवा कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि मां की प्रतिमा गोद में उठाए जब भीम इंद्रप्रस्थ से कुरूक्षेत्रके लिए रवाना हुए तो यहां पर उन्होंने थोडी देर विश्राम किया था व साथ ही झपकी भी ली थी। किंतु उन्होंने मां की प्रतिमा को गोद में ही रखा जबकि बेरी में भीम ने मां की प्रतिमा को लघुशंका करने के लिए गोद में से नीचे रख दिया था। ऐसे में बेरी में तो मां भीमेश्वरीदेवी के रूप में स्थापित ही हो गई, जबकि यहां पर जमीन से प्रतिमा निकलने पर उनका दूसरा मंदिर बना दिया गया।
पंडिताइन संतोष भारद्वाज बताती हैं कि मां ने कुछ भक्तों को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा था कि जब भी मेरे दर्शनों को बेरी आना, झज्जरके मंदिर में भी जरूर जाना। तब से बेरी जाने वाले भक्त यहां भी आने लगे। उन्होंने बताया कि नवरात्रमें यहां रोज संकीर्तन होता है तो चौदस को भंडारा किया जाता है। इसके अलावा हर माह की चौदस को जागरण किया जाता है। नवविवाहित दंपति यहां पर अपनी जात लगाने आते हैं तो बच्चों के बाल भी उतारे जाते हैं। सन 1989-90में पुर्नस्थापितइस मंदिर में नियमित आरती का समय सुबह 6और शाम के 7बजे का है। पंडित जी ने यह बताया कि दिल्ली रोड पर झज्जरबस स्टैंड से एक किलो मीटर व बेरी से करीब 13किलोमीटर पहले माता के इस मंदिर में दिल्ली, कोलकाता,कटक, मुंबई एवं गोहाटी से सबसे ज्यादा भक्त आते हैं।
पंडित जी मंदिर से जुडी एक दिलचस्प घटना यह भी बताते हैं कि जब उनके पर दादा मंदिर की सेवा करते थे तो एक बार मां की नथ चोरी हो गई। इस पर उन्होंने इस सोच के साथ पूजा करनी बंद कर दी कि जब स्वयं की रक्षा नहीं कर सकती तो हमारी क्या करेगी! लेकिन तीन चार दिनों के भीतर ही कोई अपने आप मां को फिर से नथ पहना गया।