शिप्रानदी के किनारे बसी है उज्जयिनी।यह भारतवर्ष के महत्वपूर्ण प्राचीन नगरों में से एक है। उज्जयिनी शब्द का अर्थ है विजयनी। कहते हैं कि यदि यहां की तीर्थयात्रा की जाती है, तो विजय का भाव प्राप्त होता है। उज्जयिनीको प्राचीन ग्रन्थों में अवंतिका के नाम से पुकारा गया है। अवंतिका का शाब्दिक अर्थ है-सबकी रक्षा करने वाली। पुराणों में इसे मोक्षदायिनीपुरी माना गया है। मान्यता है कि यहां महाकालेश्वर का वास है। भारतवर्ष के मानचित्र में अवंतिका[उज्जयिनी] मध्य बिन्दु यानी नाभिचक्रमें स्थित है। इसे वैदिक साहित्य अमृतग्रंथि में कहा गया है- अमृतस्यनाभि:। इसलिए यहां प्रत्येक बारह वर्ष में सिंहस्थ गुरु के समय पूर्ण कुंभ का आयोजन होता है। अवंतिकामें महाकालेश्वर आदिकाल से ही स्वयंभू ज्योतिर्लिङ्गके रूप में विराजमान हैं। कहते हैं कि इनकी आराधना करने वाले को अकाल मृत्यु का भय ही नहीं रहता है। ब्रह्मर्षि वशिष्ठ कहते हैं कि महाकालं नमस्कृत्यनरोमृत्युंन शोचयेत्।महाकाल के उपासक को मृत्यु की चिंता नहीं रहती है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, सृष्टि का प्रारंभ महाकाल से हुआ है और अंत भी इसी से होगा। यही वजह है कि उज्जयिनीको काल-गणना का केंद्र कहा जाता है। द्वादश ज्योतिर्लिङ्गोंमें केवल महाकाल ही दक्षिणमुखीहैं। सनातन धर्म के अनुसार, दक्षिण दिशा में मृत्यु के देवता यमराज का निवास है। महाकालेश्वर का दक्षिणमुखीहोना, उन्हें स्वत:मृत्युलोक का शासक बना देता है। प्रति दिन ब्रह्ममुहूर्तमें श्रीमहाकालेश्वरकी अनूठी भस्म-आरती होती है। इस आरती को देखने के लिए दूर-दूर से लोग उज्जैनआते हैं। वर्षो पूर्व इसमें चिता की भस्म का प्रयोग होता था, लेकिन महात्मा गांधी के अनुरोध पर स्थानीय विद्वानों ने उपलों से निर्मित भस्म से आरती करने की व्यवस्था की, जो आज तक चली आ रही है। फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष में षष्ठी से चतुर्दशी तिथि तक के नौ दिनों को महाकालेश्वर-नवरात्र का नाम दिया गया है। इसमें महाकाल के दर्शन-पूजन और अभिषेक का बडा माहात्म्य है। देशभर से भक्तगण नवरात्रमें उज्जयिनीके महाकालेश्वर में आकर पूजा-अर्चना करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि काल के शासक महाकाल की संपूर्ण महिमा का बखान शब्दों में संभव नहीं है। इसलिए उनके श्रीचरणोंमें साष्टांग प्रणाम अर्पित है: महाकाल महादेव, महाकाल महाप्रभो। महाकाल महारुद्र,महाकाल नमोऽस्तुते॥