एक धार्मिक मान्यता है कि परली ग्राम के निकट स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग वास्तविक ज्योतिर्लिंग है. 'परलीग्राम' निज़ाम हैदराबाद क्षेत्र के अंतर्गत पड़ता है. यहां का मन्दिर अत्यन्त पुराना है, जिसका जीर्णोद्धार रानी अहल्याबाई ने कराया था. लेकिन शिव पुराण के अनुसार झारखण्ड प्रान्त के जसीडीह के समीप देवघर का श्री वैद्यनाथ शिवलिंग ही वास्तविक वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग है. देवघर को ही चिताभूमि के नाम से जाना जाता है. कहते हैं जिस समय भगवान शंकर सती के शव को कंधे पर लेकर इधर-उधर उन्मत्त की तरह घूम रहे थे, उसी समय इस स्थान पर सती का हृतिपंड अर्थात ह्रदय का भाग गलकर गिर पड़ा था. भगवान शंकर ने सती के उस हृतिपंड का दाह-संस्कार उक्त स्थान पर किया था, जिसकारण उस स्थान का नाम चिता भूमि पड़ गया.
एक बार राक्षस राज रावण ने हिमालय पर भगवान शिव की घोर तपस्या की. तपस्या में रावण ने एक एक करके नौ सिर काटकर शिवलिंग पर चढ़ा दिया. दसवें सिर के समय भोलेनाथ प्रसन्न हो उठे और रावण को पहले की भांति करते हुए वर मांगने को कहा. रावण ने उस स्थान पर स्थापित शिवलिंग को ले जाकर लंका में स्थापित करने की अनुमति मांगी. भगवान शिव ने इसकी अनुमति देते हुए कहा कि यदि तुम इस लिंग को ले जाते समय रस्ते में धरती पर रखोगे तो यह वहीं स्थापित हो जाएगा. शिवलिंग को ले जाते समय रावण जैसे चिताभूमि में प्रवेश किया उसे लघुशंका करने कि प्रवृति हुई. उसने उस लिंग को एक अहीर को पकड़ा किया और लघुशंका करने चला गया. इधर शिवलिंग भरी होने लगा जिसके कारण उस अहीर ने उसे भूमि पर रख दिया. वह लिंग वही अचल हो गया. तब से यह वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के रूप में जाना जाने लगा. यह मनुष्य को उसकी इच्छा के अनुकूल फल देनेवाला माना जाता है. कहते हैं श्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग कि लगातार आरती-दर्शन करने से लोगों को रोगों से मुक्ति मिलती है.