करीब 6000 साल पहले महर्षि अगस्त्य ने कृष्णा और मूसी नदी के संगम पर वडेपल्ली गांव में श्री मीनाक्षी अगस्तेश्वरा और श्री लक्ष्मी नरसिम्हा की प्रतिमाएं स्थापित की थी। हजारों सालों तक यह मंदिर सुनसुना जंगल के बीच स्थ्ति रहा। बाद में मंदिर के आसपास खुदाई करते समय यहां शिवजी की प्रतिमा मिली जिसे इसी मंदिर में स्थापित कर दिया गया। यहां एक शिवलिंग है जिसपर दस छेद हैं जहां से पानी निकलता है। इसके बारे में एक जनश्रुति प्रचलित है कि एक बार शिकारी से बचने के लिए एक चिडि़या शिवजी की मूर्ति के पीछे छिप गई। शिवजी ने प्रकट होकर शिकारी से कहा कि वे यदि वह चिडि़या को छोड़ देगा तो वे अपना मस्तिष्क उसे दे देंगे। शिकारी मान गया और शिवजी का मस्तिष्क निकाल लिया। जहां जहां शिवजी के सिर में छेद हुए थे, वहां से गंगा की धार निकल पड़ी। आज भी यहां से पानी निकलता है जिसे लेने पर भी जलस्तर कम नहीं होता।