श्री नागेश्वर ज्योतिर्लिंग गुजरात प्रान्त के द्वारकापुरी से लगभग 25 किलोमीटर की दूरी पर अवस्थित है. यह स्थान गोमती द्वारका से बेट द्वारका जाते समय रास्ते में पड़ता है. इसके अतिरिक्त नागेश्वर नाम से दो अन्य शिवलिंगों की भी चर्चा ग्रन्थों में है. मतान्तर से इन लिंगों को भी कुछ लोग ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग कहते हैं. इनमें से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग निजाम हैदराबाद, आन्ध्र प्रदेश में हैं, जबकि दूसरा उत्तराखंड के अल्मोड़ा में ‘योगेश या ‘जागेश्वर शिवलिंग’ के नाम से प्रसिद्ध है. यद्यपि शिव पुराण के अनुसार समुद्र के किनारे द्वारका पुरी के पास स्थित शिवलिंग ही ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रमाणित होता है.
शिव पुराण के अनुसार एक धर्मात्मा, सदाचारी वैश्य शिवजी का अनन्य भक्त था, जिसका नाम ‘सुप्रिय’ था. जब वह नौका पर सवार होकर समुद्र के जलमार्ग से कहीं जा रहा था, उस समय ‘दारूक’ नामक एक भयंकर बलशाली राक्षस ने उस पर आक्रमण कर दिया. राक्षस दारूक ने सभी लोगों सहित सुप्रिय का अपहरण कर लिया और अपनी पुरी में ले जाकर बन्दी बना लिया. चूंकि सुप्रिय शिव जी का अनन्य भक्त था, इसलिए वह हमेशा शिव जी की आराधना में तन्मय रहता था. कारागार में भी उसकी आराधना बन्द नहीं हुई और उसने अपने अन्य साथियों को भी शंकर जी की आराधना के प्रति जागरूक कर दिया. वे सभी शिवभक्त बन गये. जब इसकी सूचना राक्षस दारूक को मिली, तो वह क्रोध में उबल उठा. उसने देखा कि कारागार में सुप्रिय ध्यान लगाए बैठा है, तो उसे डांटते हुए बोला– ‘अरे वैश्य! तू आंखें बन्द करके मेरे विरुद्ध कौन-सा षड्यन्त्र रच रहा है?’ वह ज़ोर-ज़ोर से चिल्लाता हुआ धमका रहा था, लेकिन सुप्रिय पर कुछ भी प्रभाव न पड़ा. घमंडी राक्षस दारूक ने अपने अनुचरों को आदेश दिया कि सुप्रिय को मार डालो. अपनी हत्या के भय से भी सुप्रिय डरा नहीं और वह भयहारी, संकटमोचक भगवान शिव को ही पुकारने में ही लगा रहा. उस समय अपने भक्त की पुकार पर भगवान शिव ने उसे कारागार में ही दर्शन दिये. कारागार में एक ऊंचे स्थान पर चमकीले सिंहासन पर स्थित भगवान शिव ज्योतिर्लिंग के रूप में उसे दिखाई दिये. शंकरजी ने उस समय सुप्रिय वैश्य का अपना एक पाशुपतास्त्र भी दिया और उसके बाद वे अन्तर्धान (लुप्त) हो गये. पाशुपतास्त्र (अस्त्र) प्राप्त करने के बाद सुप्रिय ने उसके बल से समूचे राक्षसों का संहार कर डाला और अन्त में वह स्वयं शिवलोक को प्राप्त हुआ. भगवान् शिव के निर्देशानुसार ही उस शिवलिंग का नाम ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ पड़ा. ‘नागेश्वर ज्योतिर्लिंग’ के दर्शन करने के बाद जो मनुष्य उसकी उत्पत्ति और माहात्म्य सम्बन्धी कथा सुनता है, वह भी समस्त पापों से मुक्त हो जाता है तथा सम्पूर्ण भौतिक और आध्यात्मिक सुखों को प्राप्त करता है.