Vat Savitri Purnima Fast

Vat Savitri Purnima Fast
This year's Vat Savitri Purnima Fast

Friday, 02 Jun - 2023

Vat Savitri Purnima Fast ~वट सावित्री पूर्णिमा व्रत in the Year 2023 will be observed on Sunday, 16th June, 2019

वट सावित्री व्रत अथवा वट सावित्री पूर्णिमा, मुख्यतः उत्तर भारत में विवाहित हिंदू महिलाओं द्वारा अपने पतियों और बच्चों के मंगल के लिए उपवास रखकर मनाया जाता है।

यह उपवास सावित्री द्वारा दिखाये गये भक्ति और दृढ़ संकल्प पर आधारित है जो माता सावित्री ने अपने पति सत्यवान को यम (मृत्यु के देवता) से वापस लाने के लिए दिखाया गया है। वट सावित्री व्रत से जुड़ी प्रार्थना और पूजा सामूहिक स्तर पर या व्यक्तिगत रूप से घर पर की जाती है। इस व्रत की तिथि को लेकर भिन्न मत हैं। वट सावित्री व्रत उपवास तीन दिनों के लिए होता है और यह त्रयोदाशी तिथि को शुरू होता है और अमावस्या अथवा पूर्णिमा पर समाप्त होता है।

विष्णु जी के उपासक इस व्रत को पूर्णिमा तिथि को करना ज्यादा हितकर मानते हैं। कुछ श्रद्धालु स्कंद पुराण तथा भविष्योत्तर पुराण के अनुसार हिन्दू पंचांग के ज्येष्ठ मास(जून-जुलाई) में शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को तथा अन्य निर्णयामृत आदि के अनुसार अमावस्या तिथि को व्रत करते हैं। तिथियों में भिन्नता होते हुए भी व्रत का उद्देश्य एक ही है सौभाग्य की वृद्धि और पतिव्रत के संस्कारों को आत्मसात करना।

वट सावित्री व्रत पूजा विधि : यह उपवास तीन रातों के लिए मनाया जाता है और चौथे दिन उपवास खोला जाता है। उपवास के दिनों की संख्या उपवास कर रहे श्रद्धालु पर निर्भर करती है। आजकल, अनेक श्रद्धालु महिलाएं केवल पूर्णिमा के महत्वपूर्ण दिन उपवास का पालन करती हैं। हिंदू धर्म के किसी भी उपवास में कोई कठोर नियम नहीं हैं। गर्भवती महिलाओं, अथवा जिन महिलाओं को कोई बीमारी हैं और जो अभी माँ बनी है वे इस उपवास को छोड़ सकती है और वे प्रार्थनाओं पर ध्यान देती हैं। कामकाजी महिलाएं भी अधिकांशतः उपवास नहीं करती हैं।

त्रयोदशी को, सुबह की गतिविधियों के बाद, महिलाएं आंवला और गिंगली (शीशम) का पेस्ट लगाती हैं और स्नान करती हैं। इसके बाद महिलाएं वट वृक्ष (बरगद के पेड़) की जड़ें खाती हैं और पानी पीती हैं। वास्तव में, तीन दिनों के लिए कई महिलाएं केवल यही खाती हैं।

महिलाएं तब बरगद वृक्ष (वट वृक्ष) की पूजा करती हैं। बरगद के पेड़ पर प्रार्थना करने के पश्च्यात, पेड़ के चारों ओर एक लाल या पीला रंग का कलावा बांधकर पानी, चावल और फूल अर्पण किए जाते हैं। फिर महिलाएं पेड़ के चारों ओर परिक्रमा करती हैं और प्रार्थना करती हैं। वट वृक्ष या बरगद का पेड़ प्रतीकात्मक रूप से त्रिदेव - ब्रह्मा, विष्णु और शिव का प्रतिनिधित्व करता है। जड़ ब्रह्मा है, तना विष्णु है और ऊपरी भाग शिव है। इस दिन सत्यवान सावित्री की यमराज सहित पूजा की जाती है। पूरे पेड़ को प्रतीकात्मक रूप से सावित्री के रूप में भी लिया जाता है।

घर पर, चन्दन या हल्दी का उपयोग करके प्लेट या लकड़ी पर बरगद के पेड़ की एक पेंटिंग बनाई जाती है। स्वर्ण या मिटटी से सावित्री सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यमराज की प्रतिमा बनाकर धुप, चन्दन, फल, रोली, केसर से पूजन करना चाहिए। बरगद के पेड़ की पेंटिंग को माता सावित्री का स्वरूप मानकर तीन दिनों तक पूजा की जाती है। नियमित रूप से त्रयोदशी, चतुर्दशी और अमावस्या या पूर्णिमा के तीन दिनों तक इसी पूजा पद्धति का अनुकरण किया जाता है। चंद्रमा जल से अर्ध्य(अर्पण) देकर माता सावित्री की प्रार्थनाओं के बाद चौथे दिन उपवास पूर्ण होता है।

इसके अलावा उपवास करने वाली सभी महिलाएं बुजुर्गों एवं अन्य विवाहित महिलाओं से आशीर्वाद लेती हैं। इस दिन में विशेष व्यंजन तैयार किए जाते हैं और पूजा के पश्च्यात दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच प्रसाद रूप में वितरित किए जाते हैं। अनेक श्रद्धालु लोग वट सावित्री व्रत के दौरान गरीबों को भोजन, कपड़े और धन भी दान करते हैं।

वट सावित्री व्रत कथा : भद्र देश के राजा द्युमत्सेन के यहाँ पुत्री रूप में सर्वगुण सम्पन्न सवित्री का जन्म हुआ। राजकन्या ने द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान की कीर्ति सुनकर उन्हें पतिरूप में वरण कर लिया। इधर यह बात जब नारद को ज्ञात हुई तो वे अश्वपति से जाकर कहने लगे आपकी कन्या ने वर खोजने में निसंदेह भारी भूल की है। सत्यवान गुणवान तथा धर्मात्मा भी है पर वह अल्पायु है और एक वर्ष के बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। नारद जी की यह बात सुनते ही राजा अश्वपति का चेहरा उतर गया। वृथा ह होहि देव ऋषि बानी ऐसा विचार करके उन्होंने अपनी पुत्री को समझाया कि ऐसे अल्पायु व्यक्ति के साथ विवाह उचित नहीं। इसलिए कोई अन्य वर चुन लो, इस पर सावित्री बोली पिताजी आर्य कन्यायें अपना पति एक ही बार वरण करती हैं।

राजा एक बार ही आज्ञा देता है, पंडित एक ही बार प्रतिज्ञा करते हैं तथा कन्यादान भी एक ही बार किया जाता है। अब चाहे जो हो मैं सत्यवान को ही वर रूप में स्वीकार करूंगी। सावित्री ने नारद से सत्यवान की मृत्यु का समय पता कर लिया था। अन्ततोगत्वा उन दोनों को पाणिग्रहण संस्कार में बाँध दिया गया। वह ससुराल पहुँचते ही सास-ससुर की सेवा में रत रहने लगी। समय बदला, ससुर का बल क्षीण होता देख शत्रुओ ने राज्य छीन लिया। नारद का वचन सावित्री को दिन- प्रतिदिन अधीर करता रहा। उसने जब जाना की पति की मृत्यु का दिन नजदीक आ गया है, तब तीन दिन पूर्व से ही उपवास शुरू कर दिया।

नारद जी द्वारा कथित निश्चित तिथि पर पितरों का पूजन किया। नित्य की भांति उस दिन भी सत्यवान अपने समय पर लकड़ी काटने के लिए जब चला तो सावित्री भी सास ससुर की आज्ञा से चलने को तैयार हो गयी। सत्यवान वन मन पहुंचकर लकड़ी काटने के लिए एक वृक्ष पर चढ़ गया, वृक्ष पर चढ़ते ही सत्यवान के सिर में असहनीय पीड़ा होने लगी, वह व्याकुल हो गया और वृक्ष के ऊपर से नीचे उतर आया। सावित्री अपना भविष्य समझ गयी तथा अपनी गोद में सत्यवान को लिटा लिया।

उसी समय दक्षिण दिशा से अत्यंत प्रभावशाली महिषारूढ़ यमराज को आते देखा, धर्मराज सत्यवान के जीव को जब लेकर चल दिए तो सावित्री उनके पीछे चल दी। पहले तो यमराज ने उसे देवी विधान सुनाया, परन्तु उसकी निष्ठा देखकर वर मांगने को कहा! सावित्री बोली मेरे सास ससुर वनवासी तथा अंधे हैं, उन्हें आप दिव्य ज्योति प्रदान करें। यमराज ने कहा ऐसा ही होगा, अब लौट जाओ।

यमराज की बात सुनकर उसने कहा भगवान्! मुझे अपने पतिदेव के पीछे पीछे चलने में कोई परेशानी नहीं, पति अनुगमन मेरा कृतव्य है। यह सुनकर उन्होंने फिर से वर मांगने को कहा, सावित्री बोली हमारे ससुर का राज्य छिन गया है उसे वे पुनः प्राप्त कर लें तथा धर्मपरायण हो। यमराज ने यह वर भी देकर लौट जाने को कहा, परन्तु उसने पीछा न छोड़ा। अंत में यमराज को सत्यवान का प्राण छोड़ना पडा तथा सावित्री को सौभाग्यवती हो सौ पुत्र होने का वरदान देना पड़ा। सावित्री को यह वरदान देकर धर्मराज अन्तर्धान हो गए। इस प्रकार सावित्री उस वटवृक्ष के नीचे आई जहां पति का मृत शरीर पड़ा था।

ईश्वर की अनुकम्पा से उसके पति में जीवन संचार हुआ तथा सत्यवान उठकर बैठ गए। दोनों हर्ष से प्रेमालिंगन करके राजधानी को ओर गए, उन्होंने माता पिता को भी दिव्य ज्योति वाला पाया। इस प्रकार सावित्री सत्यवान चिरकाल तक राज्य सुख भोगते रहे।

====================

Vat Savitri Vrat, or Vat Savithri Poornima, is a fast observed by married Hindu women in North India for the wellbeing of their husbands and children. The fasting is based on the devotion and determination shown by Savitri to win back her husband Satyavan from the clutches of yama (god of death). The prayer and pujas associated with Vat Savitri is observed at the community level or individually at home. There are different opinions about the date of this fast.

Vat Savitri Vrat Fasting is for three days and it begins on the trayodashi day and completes on Amavasi or Purnima. Vishnu worshipers consider this fast to be more beneficial to full moon day. According to Skanda Purana and Bhavishyottar Purana some sections of Hindu society observe the vrat during Purnima (full moon) of the Hindu Vikrami Samvat calender month of Jyeshtha (June – July) and others according to Nirnayamrata during Amavasya (new moon). Despite the differences in the dates, the purpose of fast is same, the growth of good fortune and assimilation of the sacraments of patriot.

Vat Savitri Fast worship Process :  The fast is observed for three nights and is broken on the fourth day. The number of days the fast is observed depends on the person who is observing it. Nowadays, many women only observe the fasting on the important day of Purnima.There are no rigid rules regarding any Hindu fast. Pregnant women, those women having any ailments or diseases and those who have just delivered a baby usually skip this fasting and they just concentrate on prayers. Working women also avoid the fasting.

On the Trayodashi day, after morning activities, women apply paste of amala (Indian gooseberry) and gingli (sesamum) and take bath. After this women eat the roots of Vata Vriksha (Banyan Tree) and drink water. In fact, for three days many women only eat just this.

Women then worship the Banyan Tree (Vat Vriksha). After praying to the Banyan Tree, a red or yellow colored thread is tied around the tree. Then water, rice and flowers are offered as part of the puja. Women then go round the tree and chant prayers. Vat Vraksha or Banyan tree symbolically represents the Trimurtis – Brahma, Vishnu and Shiva.
This day is worshiped for Satyawan, Savitri, and Yamraaj. The root is Brahma, the stem is Vishnu and the upper portion is Shiva. The whole tree is also symbolically taken as Savitri.

At home, a painting of banyan tree is made on a plate or wood using sandalwood paste or turmeric. Statue of Savitri Satyavan and of Yamraj riding on a buffalo of gold or soil should worshiped with sun, moon, fruit, roli, saffron. Pujas are done to the painting of banyan tree for three days and listen to the story of Savitri Satyawan. The routine is followed on the Trayodashi, Chatrudashi and Amavasi or Purnima. The fast is completed on the fourth day after offering water to moon and prayers to Savitri. Apart from this all fasting women take the blessings of elders and other married women. Special dishes are prepared on the day and distributed among friends and relatives after the pujas. Many people also distribute food, clothes and money to the poor during Vat Savitri Vrat.


 
 
 
 
 
UPCOMING EVENTS
  Sheetla Ashtami, 2 April 2024, Tuesday
  Somvati Amavasya, 8 April 2024, Monday
  Cheti Chand, 9 April 2024, Tuesday
  Gangaur, 11 April 2024, Thursday
  Gauri Tritiya 2024, 11 April 2024, Thursday
  Baisakhi, 13 April 2024, Saturday
 
Comments:
 
 
 
Festival SMS

Memories of moments celebrated together
Moments that have been attached in my heart forever
Make me Miss You even more this Navratri.
Hope this Navratri brings in Good Fortune

 
 
 
Ringtones
 
Find More
Copyright © MyGuru.in. All Rights Reserved.
Site By rpgwebsolutions.com