हिन्दू धर्म में शनि दण्ड देने वाले देवता के रूप में पूजनीय है। ज्योतिष शास्त्रों के मुताबिक भी शनि की टेढ़ी चाल किसी भी व्यक्ति को बेहाल कर सकती है। यही कारण है कि उनकी छबि क्रूर भी मानी जाती है। जिससे शनि की साढ़े साती, महादशा आदि में शनिदेव की उपासना का महत्व है।
वैसे शनि के बुरे असर से अनेक तरह की पीड़ाएं मिलती है, किंतु इनमें से शारीरिक रोग की बात करें तो शनि दोष से पैरों की बीमारी, गैस की समस्या, लकवा, वात और मानसिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। जिससे व्यक्ति की कमजोरी उसे सुख और आनंद से वंचित कर सकती है।
शास्त्रों में शनि दोष से पैदा हुए ऐसे ही रोगों से छुटकारे और बचाव के लिए यह वैदिक शनि मंत्र अचूक माना गया है। इस मंत्र का जप स्वयं या किसी विद्वान ब्राह्मण से कराना रोगनाश के लिए अचूक माना जाता है।
जानते हैं शनि के इस खास मंत्र और सामान्य पूजा विधि को-
- शनिवार के दिन सुबह स्नान कर घर या नवग्रह मंदिर में शनिदेव की गंध, अक्षत, काले तिल, उड़द और तिल का तेल चढ़ाकर पूजा करें।
- पूजा के बाद शनि के इस वैदिक मंत्र का जप कम से कम 108 बारे जरूर करें -
ऊँ शन्नो देवीरभीष्टय, आपो भवन्तु पीतये। शं योरभिस्त्रवन्तु न:।।
- मंत्र जप के बाद शनिदेव से पूजा या मंत्र जप में हुई गलती के लिए क्षमा मांग स्वयं या परिजन की बीमारी से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें।