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प्रेतत्व से मुक्ति के लिए पिंडदान

 

पितरों[पूर्वजों] की आत्मा की शांति तथा उनके उद्धार [मुक्ति] की खातिर पिंडदान के लिए विश्व में सर्वश्रेष् स्थल बिहार के गया को माना गया है। आत्मा, पे्रतात्मा तथा परमात्मा में विश्वास रखने वाले लोग आश्विन कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा तिथि से पूरे पितृपक्ष की समाप्ति तक गया में आकर पिंडदान करते हैं।

गया में वर्तमान समय में 45वेदियांहैं जहां लोग पिंडदान कर अपने पुरखों को प्रेतयोनिसे मुक्ति दिलाते हैं। इन्हीं 45वेदियोंमें से एक है प्रेतशिलावेदी।

मान्यता है कि यहां श्राद्ध करने से पितरोंको पे्रतत्वसे मुक्ति मिलती है। गया शहर से लगभग चार किलोमीटर दूर प्रेतशिलातक पहुंचने के लिए 873फीट ऊंची प्रेतशिलापहाडी के शिखर तक जाना पडता है। वैसे तो सभी पिंडदान करने वाले यहां पहुंचते हैं, लेकिन शारीरिक रूप से कमजोर लोगों को यहां तक पहुंचना मुश्किल होता है, परंतु कोई भी व्यक्ति प्रेतशिलावेदी के पास पिंडदान किए बिना अपने किए कार्य को पूरा नहीं मानता। यही कारण है कि उस वेदी तक पहुंचने के लिए यहां पालकी की व्यवस्था भी है जिस पर सवार होकर शारीरिक रूप से कमजोर लोग यहां तक पहुंचते हैं।

प्रेतशिलावेदी के पास विष्णु भगवान के चरण के निशान हैं तथा इस वेदी के पास पत्थरों में दरार है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से अकाल मृत्यु को प्राप्त पूर्वजों या परिवार के किसी सदस्य तक पिंड सीधे पहुंचता है तथा उन्हें मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है।ऐसे सभी वेदियों पर तिल, गुड, जौ आदि से पिंड दिया जाता है परंतु यहां तिल मिश्रित सत्तू बिखेरा जाता है। उन्होंने बताया कि पूर्वज जो मृत्यु के बाद प्रेतयोनिमें प्रवेश कर जाते हैं तथा अपने ही घर में लोगों को तंग करने लगते हैं। यहां पिंडदान हो जाने से उन्हें शांति मिल जाती है और वे मोक्ष को प्राप्त कर लेते हैं।

एक अन्य पंडा के अनुसार मनुस्मृति, याज्ञवल्क्यस्मृति और गरुड पुराण में श्राद्ध के विषय में उल्लेख मिलता है। स्पष्ट है कि पिंड प्राप्त होने पर पितर, श्राद्ध कार्य करने वाले परिवार में धन, संतान, भूमि, शिक्षा, आरोग्य आदि में वृद्धि प्रदान करते हैं।

 

 

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