प्रेम के तीन तल हैं
-१- शारीरिक ,२- मानसिक , ३- आत्मिक ;
१- शारीरिक तल केवल शरीर तक ही सीमित होता है , इसमे बड़े खतरे हैं , क्योंकि इसमे जब तक शरीर की सुन्दरता है , तब तक ही प्रेम उमड़ता है , जब हम किसी #सुन्दरता को बार-बार देखते हैं , तो मनुष्य का स्वभाव उससे ऊब जाता है , यानि फिर किसी नयी सुन्दरता की तलाश शुरु , फिर ऊबाहट , फिर नयी तलाश ; इसमे मन को खुराक मिलती है , लेकिन आत्मा की तृप्ति नही ! वैवाहिक मामलों मे यह प्रेम #तलाक का पर्याय होता जा रहा है ;ईर्ष्या , द्वेष , हत्या, इसी खतरे मे ही पनपती हैं ! यह तल केवल वासनायुक्त है !
२- मानसिक प्रेम मे मनुष्य किसी से प्रेम करता है तो वह एक जिम्मेदारी वाला एहसास है , ऐसे प्रेमी जीवन भर यह रिश्ता निभा तो देते हैं ,लेकिन कष्टदायक स्थिति होती है इसमें कहीं भी सुख नही है ; आदमी की हालत धोबी के गधे के मानिन्द होती है ! संसारी मनुष्य के लिये ठीक-ठाक है ;
३- आत्मिक प्रेम - दुनियां के जितने भी ग्रन्थ आत्मिक अध्याय के बारे मे लिखे है ,उतने शायद किसी और विषय पर नही लिखे गये | यह अध्याय इतना गहरा है कि जो इसमे डूब गया - वही तैरा और पार होगया ; (जिसने प्रेम को जान लिया , उसके लिये दुनियां का कोई भी ग्रन्थ नई बात बताने के लिये बाकी नही रह जाता) आत्मिक प्रेम इतना ताकतवर होता है कि उसे पता ही नही है कि ताकत क्या होती है ; इस प्रेम को सीमाओं मे नहीं बाँधा जा सकता ; यह सारी बाधाओं का अतिक्रमण कर जाता है ; यह बुद्धी ,अक्ल, मान्यताओं ,बन्धन, सीमा, देश , आकाश , पाताल , सबका अतिक्रमण कर जाता है !
इसकी व्याख्या नही की जा सकती |||