अभिमान का त्याग करना ही मनुष्य के लिए हितकर है। सुख-दुख जीवन के दो पहलू है। सुख के अंदर दुख भी निहित होता है। मगर इंसान केवल सुख चाहता है और दुख से दूर भागता है, जबकि जीवन की सचाई यह है कि हर सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख छिपा होता है। परमात्मा की प्राप्ति जीवन का लक्ष्य है और इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए मनुष्य को पुरुषार्थ के मार्ग पर चलना होगा। पुरुषार्थ करते हुए सत्य को जीवन में धारण करना होगा। अंतरमुखीहोने से ही मनुष्य उस परम शांति को प्राप्त कर सकता है, जब तक राग द्वेष आदि बुराइयां मनुष्य के साथ लगी हुई है। तब तक घर में रहकर भी कारागार जैसा अनुभव होता है। श्रद्धा समस्त ज्ञान का मूल सूत्र है। श्रद्धा होने पर दुर्गम ज्ञान भी सुगम हो जाता है। हमें यह जन्म आत्मा के कल्याण के लिए मिला है और आत्म कल्याण की चाह ही श्रद्धा उत्पन्न करती है।
मनुष्य शरीर पाकर भी यदि परमात्मा की प्राप्ति नही हुई तो मानो यह जन्म व्यर्थ ही गया, जो मनुष्य आत्म कल्याण कार्यो को छोडकर संसार के फंदे में फंस रहा है उससे बडा अज्ञानी कौन हो सकता है। लिहाजा जिस काम के लिए आए है उसे अवश्य पूरा कर लेना चाहिए। गीता में भगवान ने कहा है कि अज्ञानी लोग मेरे परम भाव को नही जानते, जिस कारण जन्म मरण को प्राप्त हो जाते है तथा मै अव्यक्त होते हुए भी अपने भक्तों को अनुग्रह करने के लिए व्यक्त हो जाता हूं।
सदाचारी स्वयं अपने आप में खो जाता है। मन की ऊर्जा को काम में नही राम में लगाना, भोग में नही योग में लगाना, वासना को समाधि में लगाना तो मन भी स्वस्थ रहेगा व शरीर में स्वस्थ मन बना रहेगा। इसलिए गुरु भक्तों का फरमान है कि सदाचारी हमेशा ऊपर बै ता है। इसलिए मानव को हमेशा सदाचार का पालन करना चाहिए।
भक्त भगवान का प्रिय होता है और भक्त का बैरी भगवान का बैरी होता है। इसलिए भक्त को भगवान में अपनी प्रीति रखनी चाहिए। प्रभु को उनका सेवक परमप्रिय है। जो मनुष्य उनके सेवक का अहित करने का विचार अपने मन में भी लाता है ,उसका लोक व परलोक दोनो में ही अहित हो जाता है।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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