प्रत्येक मानव मन में भगवान की दिव्य ज्योति जलती है, लेकिन इस दिव्य ज्योति को इन बाहरी आंखों से देखना संभव नहीं है। जब कोई सद्गुरु मनुष्य के ज्ञान नेत्र को खोल देता है, तभी इस दिव्य ज्योति का दर्शन कर पाना संभव होता है। परमात्मा की स्वयंभू ज्योति बिना सूर्य, चंद्र, अग्नि या बाहरी प्रकाश के सहायता के हमेशा प्रकाशमान रहती है।
ब्रह्मा,विष्णु, शिव, शुक्र, शनक, नारद इत्यादि हजारों ऋषि मुनियों ने नाद्वा नेत्रों को बंद करके पद्मासन लगाकर परमपिता परमात्मा का ध्यान लगाकर हृदय में प्रकाशमान इस दिव्य ज्योति के दर्शन किए हैं।
परमात्मासच्चिदानंद स्वरूप है, जो साधक सद्गुरु का सानिध्य पाकर तन, मन व धन से सेवा करके उन्हें प्रसन्न करता है, कृपालु सद्गुरु उन शिष्यों के ज्ञान नेत्रों को खोल देता है, वह मनुष्य हृदय में जल रही इस दिव्य ज्योति का दर्शन आसानी से कर पाता है।