एक बहुत बड़े ेकेदार के यहां हजारों मजदूर काम करते थे। एक बार उस क्षेत्र के मजदूरों ने अपनी मांगों को लेकर हड़ताल कर दी। महीनों हड़ताल चलती रही। नतीजतन मजदूर भूखे
मरने लगे और रोजी-रोटी कमाने के लिए दूसरी बस्तियों में चले गए, लेकिन दूसरी बस्तियों के गरीब मजदूर इस बस्ती में आ पहुंचे। ेकेदार नित्य ही ऐसे लोगों की तलाश में रहता
था, जो उसके ेके का काम पूरा कर सकें। अत: एक दिन वह बस्ती के चौराहे पर आकर खड़ा हो गया। तभी एक मजदूर कंधे पर कुदाली रखे वहां आया। ेकेदार ने उससे पूछा- क्या
मजदूरी लेगा? मजदूर ने कहा- बारह आने। ेकेदार ने उससे कहा -अच्छा दूंगा, जाकर मेरे ईंटों के भट् े के लिए मिट्टी खोदो। इसके बाद एक दूसरा मजदूर वहां आया, ेकेदार ने
उससे भी मजदूरी पूछी। वह बोला- तीन रुपए। ेकेदार ने उसे खान में कोयला खोदने भेज दिया। तीसरे मजदूर ने बड़े ताव से दस रुपए अपनी मजदूरी बताई। ेकेदार ने उसे हीरे की
खान में भेज दिया। शाम को तीनों मजदूरी लेने पहुंचे। पहले ने सौ टोकरी मिट्टी खोदी। दूसने ने दस मन कोयला निकाला और तीसरे को एक हीरा मिला। तीनों के हाथ पर जब
मजदूरी रखी गई तो पहला मजदूर तीसरे मजदूर के हाथ पर दस रुपए देखकर नाराज होने लगा। तब ेकेदार बोला- तुम्हारी मजदूरी तुमने ही तय की थी। जिसमें जितनी शक्ति और
इच्छा थी, उसने उतनी मजदूरी बताई और सभी ने काम भी उसी के अनुरूप किया है। यह सुनकर पहला मजदूर चुप हो गया। सार यह है कि शक्ति ही जीवन है, दुर्बलता ही मृत्यु है।
अत: आशावादी, दृढ़ व अनुकूल विचारों को अपनाकर तदनुकूल कर्म करना चाहिए।