1865 में लुई पास्चर को रेशम के कीड़ों में हो रही बीमारी के बारे में पता लगाने व उसकी रोकथाम के लिए उपाय तलाशने का जिम्मा सौंपा गया. तीन वर्षों के लगातार अनथक प्रयासों के फलस्वरूप उन्होंने न सिर्फ उस बीमारी का पता लगाया जिससे कीड़े मर रहे थे, बल्कि इलाज भी ढूंढ निकाला.
जब लुई इस महत्वपूर्ण कार्य को अंजाम दे रहे थे तब उसी दौरान एक के बाद एक उनके तीन बच्चों की मृत्यु हो गई. इस पर एक बार उनके एक मित्र ने उनके साहस की तारीफ करते हुए कहा “आपके साहस की दाद देनी पड़ेगी कि ऐसे कठिन समय में भी आपने अपना कार्य पूरा किया.”
इस पर लुई ने कहा – “मैं साहस-वाहस को तो नहीं जानता, मगर मैं अपनी जिम्मेदारी निभाना खूब जानता हूँ, और वही मैंने किया.”