आस्पेंस्की विश्वविख्यात था। उसकी किताबें दुनिया की चौदह भाषाओं में अनुवादित हो चुकी थीं। और उसने एक ऐसी अदभुत किताब लिखी थी कि कहा जाता है कि दुनिया में वैसी केवल तीन किताबें लिखी गई हैं। पहली किताब अरस्तु ने लिखी थी। उस किताब का नाम है: आर्गानम, ज्ञान का सिद्धांत। दूसरी किताब बेकन ने लिखी, उसका नाम है: नोवम आर्गानम, ज्ञान का नया सिद्धांत। और तीसरी किताब पी.डी.आस्पेंस्की ने लिखी: टर्शियम आर्गानम, ज्ञान का तीसरा सिद्धांत। कहते हैं इन तीन किताबों के मुकाबले दुनिया में और किताबें नहीं। और बात में सचाई है। मैंने तीनों किताबें देखी हैं। बात में बल है। ये तीन किताबें अदभुत हैं। और आस्पेंस्की ने तो हद्द कर दी! उसने किताब के प्रथम पृष्ठ पर ही यह लिखा है कि पहला सिद्धांत और दूसरा सिद्धांत जब पैदा भी नहीं हुए थे, तब भी मेरा तीसरा सिद्धांत मौजूद था। मेरा तीसरा सिद्धांत उन दोनों से ज्यादा मौलिक है। और इसमें भी बल है। यह बात भी झूठी नहीं है, कोरा दंभ नहीं है। इस बात में सचाई है। आस्पेंस्की की किताब बेकन, अरस्तू दोनों को मात कर देती है। दोनों को बहुत पीछे छोड़ देती है।
ऐसा प्रसिद्ध गणितज्ञ गुरजिएफ को मिलने आया। और गुरजिएफ ने पता है उससे क्या कहा! एक नजर उसकी तरफ देखा, उठा कर एक कागज उसे दे दिया--कोरा कागज--और कहा, बगल के कमरे में चले जाओ। एक तरफ लिख दो जो तुम जानते हो--ईश्वर, आत्मा, स्वर्ग, नरक--जो भी तुम जानते हो, एक तरफ लिख दो। और दूसरी तरफ, जो तुम नहीं जानते हो। फिर मैं तुमसे बात करूंगा। उसके बाद ही बात करूंगा। बुद्धिवादियों से मेरे मिलने का यही ढंग है।
हतप्रभ हुआ आस्पेंस्की। ऐसे स्वागत की अपेक्षा न थी, यह कैसा स्वागत! नमस्कार नहीं, बैठो, कैसे हो, कुशलता-क्षेम भी नहीं पूछी। उठा कर कागज दे दिया और कहा--बगल के कमरे में चले जाओ! सर्द रात थी, बर्फ पड़ रही थी। और आस्पेंस्की ने लिखा है, मेरे जीवन में मैं पहली बार इतना घबड़ाया। उस आदमी की आंखों ने डरा दिया! उस आदमी के कागज के देने ने डरा दिया! और जब मैं कलम और कागज लेकर बगल के कमरे में बैठा सोचने पहली दफा जीवन में--कि मैं क्या जानता हूं? तो मैं एक शब्द भी न लिख सका। क्योंकि जो भी मैं जानता था वह मेरा नहीं था। और इस आदमी को धोखा देना मुश्किल है। मैंने जो किताबें लिखी हैं, वे और किताबों के आधार पर लिखी थीं; उनको मांजा था, संवारा था, मगर वे किताबें मेरे भीतर आविर्भूत नहीं हुई थीं। वे फूल मेरे नहीं थे; वे किसी बगीचे से चुन लाया था। गजरा मैंने बनाया था, फूल मेरे नहीं थे। एक फूल मेरे भीतर नहीं खिला। आस्पेंस्की ने लिखा है कि मैं पसीने से तरबतर हो गया; बर्फ बाहर पड़ रही थी और मुझसे पसीना चू रहा था! मैं एक शब्द न लिख सका। वापस लौट आया घंटे भर बाद। कोरा कागज कोरा का कोरा ही गुरजिएफ को लौटा दिया और कहा कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं। आप यहीं से शुरू करें--यह मान कर कि मैं कुछ भी नहीं जानता हूं।
गुरजिएफ ने पूछा, तो फिर इतनी किताबें क्यों लिखीं? कैसे लिखीं?
आस्पेंस्की ने कहा, अब उस दुखद प्रसंग को न उठाएं। अब मुझे और दीन न करें, और हीन न करें। क्षमा करें। मैं होश में नहीं था। मैं बेहोशी में लिख गया। वह मेरे पांडित्य का प्रदर्शन था। लेकिन आपके पास ज्ञान के लिए आया हूं, झोली फैलाता हूं भिखमंगे की। एक अज्ञानी की तरह आया हूं।
गुरजिएफ ने कहा, तो फिर कुछ हो सकेगा। फिर क्रांति हो सकती है।