एक सूफी फ़क़ीर हुआ, बायजीद।
बैठा था अपने द्वार पर झोपड़े के,
एक जिज्ञासु ने पूछा: धर्म क्या है?
साधना क्या है? मार्ग क्या है?
तो बायजीद ने पूछा: क्या करोगे जान कर?
उस युवक ने कहा:मुक्त होना है बंधन से।
बायजीद हंसा। जोर से हंसा, जैसे पागल हो।
और उसने कहा: पहले ठीक से पता लगाकर आओ-
बाँधा किसने है, जो बंधन से मुक्त होना चाहते हो?
जब तक इसका पक्का पता लगा कर आओगे,
तब तक मैं नही जवाब देने वाला नही।
कहते है ,युवक गया, बरसो बाद लौटा-
वही पागलों जैसी हंसी अब उसके पास थी।
बायजीद ने पूछा: लगा लिया पता:
उस युवक ने कहा: अब कुछ पूछने नही,
सिर्फ हंसी का जवाब देने आया हूँ ।
जैसे जैसे खोजने लगा वैसे वैसे साफ होने लगा
कि बंधा तो मैं ही हूँ, बांधा किसी ने भी नही।