एक अनपढ़ किसी महात्मा के पास जाकर बोला- ‘‘महाराज ! हमको तो कोई सीधी-सादी बात बता दो, हम भी भगवान का नाम लेंगे। महात्माजी ने कहा- ‘‘तुम ‘अघमोचन-अघमोचन’ (‘अघ’ माने पाप, ‘मोचन’ माने छुड़ानेवाला) नाम लिया करो। अब वह बेचारा गाँव का अनपढ़ आदमी ‘अघमोचन-अघमोचन’ करता हुआ चला तो गाँव जाते-जाते ‘अ’ भूल गया। वह ‘घमोचन-घमोचन’ बोलने लगा। पढ़ा-लिखा तो था नहीं। एक दिन वह हल जोत रहा था और ‘घमोचन-घमोचन’ कर रहा था, इतने में बैकुंठ लोक में भगवान भोजन करने बैठे। उनको हँसी आ गयी। लक्ष्मीजी ने पूछा- ‘‘आप क्यों हँसते हो ?’’
भगवान बोले- ‘‘आज हमारा भक्त एक ऐसा नाम ले रहा है कि वैसा नाम तो किसी शास्त्र में है ही नहीं।" इसपर लक्ष्मी जी ने कहा- ‘‘तब तो हम उसको देखेंगे और सुनेंगे कि कौन-सा नाम ले रहा है।
लक्ष्मी-नारायण दोनों वेश बदल कर खेत में जा पहुँचे। पास में गड्ढा था, मुख पर कालख लपेट भगवान स्वयं तो वहाँ छिप गये, और लक्ष्मीजी भक्त के पास जाकर पूछने लगीं- ‘‘अरे, तू यह क्या घमोचन-घमोचन बोल रहा है ?? उन्होंने एक बार, दो बार, तीन बार पूछा परंतु वह कुछ उत्तर ही न दे रहा था। वह सोच रहा था कि ‘इसको बताने में हमारा नाम-जप छूट जायेगा।’ अतः वह चुप रहा, बोला ही नहीं।
जब बार-बार लक्ष्मीजी पूछती रहीं तो अंत में उसको गुस्सा आ गया गाँव का आदमी तो था ही, बोला- ‘‘जा-जा ! तेरे खसम (पति) का नाम ले रहा हूँ। अब तो लक्ष्मीजी डरीं कि यह तो हमको पहचान गया। फिर बोलीं- ‘‘अरे, तू मेरे खसम को जानता है क्या ? कहाँ है मेरा खसम ?’’
एक बार, दो बार, तीन बार पूछने पर वह फिर झुँझलाकर बोला- ‘‘कलमुहाँ वहाँ गड्ढे़ में पड़ा है, जा निकाल ले..! लक्ष्मीजी समझ गयीं कि इसने हमको पहचान लिया। नारायण भी वहाँ आ गये और बोले- ‘‘लक्ष्मी ! देख ली मेरे नाम की महिमा ! यह अघमोचन और घमोचन का भेद भले न समझता हो लेकिन हम तो समझते हैं कि यह हमारा ही नाम ले रहा है। यह हमारा ही नाम समझकर घमोचन नाम से हमको ही पुकार रहा है। अब आओ, इसे दर्शन दें।’ भगवान ने भक्त को दर्शन देकर कृतार्थ किया।
भक्त शुद्ध-अशुद्ध, टूटे-फूटे शब्दों से अथवा गुस्से में भी, कैसे भी भगवान का नाम लेता है तो भगवान का हृदय उससे मिलने को लालायित हो उठता है।