माटी के दीये खरीदकर बड़ेबाबू लौट ही रहे थे कि धनिया उनके पैर पकड़कर विनती करने लगी, बाबू जी मेरे दीये भी खरीद लो न.. आज मेरा एक भी दीया नहीं बिका। - नहीं बिका तो मैं क्या करूं ? अपने घर में जला लेना । - बा
बू जी, दीये जलाना हमारे भाग्य में कहां ? घर में चूल्हा जल जाये, अपनी तो वही दीवाली है । सुनकर बाबूजी का हृदय पिघल गया और उन्होंने सारे दीये खरीद लिए । घर आकर आज उन्हें पहली बार ऐसा लगा कि इस दीवाली में इन दीयों ने उनको भीतर तक जगमगा दिया ।