सत्य सैंकडो में से एक के ही भीतर प्रविष्ट होता है परन्तु फिर विस्तार पाता जाता है !एक का सत्य दुसरे का सत्य और अनेको का सत्य बनता जाता है !किसी सही बात को कहने और करने में कभी संकोच मत करिये !अपने आप को लगता है कि और लोग हमसे अधिक जानते और समझते है ,हम कोई मूर्खता की बात न कह दे !पर सच यह है कि यदि आपने किसी भी बात को ऐसे महसूस किया है कि आपके भीतर वह आंदोलन मचाती जा रही है तो उसे अवश्य कहिये !मानकर चलिए कि जिस समुदाय में आप कह रहे है वह आपको मुर्ख ही मानेगा ,क्योंकि सत्य का रूप ही छिपा हुआ है !वह सत्य इसलिए है कि उसने आपके भीतर किसी अन्धकार खंड को हटाया है ,वह प्रकाशित हुआ है !सूर्योदय तक सोकर न उ ने वाली पीढ़ी में तो और भी देर से प्रकाशित होगा ,परन्तु होगा अवश्य !अपने भीतर के प्रकाश को पहचानिये !अपने भीतर की सुगन्धि को नासिका में भरने का प्रयत्न कीजिये ,तभी आपकी ज्ञान की तृष्णा मृग की तरह निर्बल पैरों में भी निरंतर दौड़ने की शक्ति पैदा कर देगी !जीवन ऎसी दौड है जिसमें हर व्यक्ति को भाग लेना है !हर एक की प्रारम्भिक तथा दौड़ने की रेखाएं अलग -अलग है !हर एक के लिए सीटी अलग -अलग बजती है !हर एक के पहुंचने का स्थान अलग है ,पर दौड़ने का प्रयत्न सभी को करना है !अपनी गति से चलकर अधिक से अधिक उपलब्धि के साथ कौन किस रूप में अपने आप को खड़ा कर पाता है ,यही दौड का अंत है !अपने लिए अपने आप सोचिये !!!!!