पुराने जमाने की बात है। दो साधु किसी जंगल के समीप एक कुटिया बनाकर रहते थे। उनमें से एक अधेड़ था, जो हर परिस्थिति में शांत और प्रसन्न रहता था, जबकि दूसरा युवा था। वह थोड़ा तुनकमिजाज था, बात-बात में बिगड़ जाता था। एक बार दोनों यात्रा पर निकले। काफी दिन तक घूमते रहे। लौटने पर उन्होंने देखा कि उनकी कुटिया के बरामदे का छप्पर आंधी-तूफान के कारण उड़ गया है। अपनी टूटी झोपड़ी देखकर युवा साधु ईश्वर को कोसते
हुए बोला, हे ईश्वर, हम हमेशा तेरे नाम का जाप करते हैं, फिर भी तूने हम गरीबों का छप्पर तोड़ दिया। यदि तू अपने भक्तों की रक्षा नहीं करेगा, तो फिर कौन करेगा? युवा साधु बोले जा रहा था पर अधेड़ साधु मौन खड़ा था। उसकी आंखें आकाश की ओर टिकी थी और उनसे आंसू बह रहे थे। परमात्मा के प्रति आभार से उसका रोम-रोम पुलकित हो रहा था। अधेड़ साधु को मौन देख युवा साधु को बेहद आश्चर्य हुआ। लेकिन अधेड़ साधु ने उसके मन के भाव जान लिए थे। वह आकाश की ओर देखते हुए बोला, वाह ईश्वर, तेरी लीला अपार है। हम जब माता के गर्भ में थे, तब वहां तूने हमारी रक्षा की। मित्रों की प्रीति से हमें पुष्ट किया। फिर संत-महात्माओं का सत्संग दिया ताकि हम सत्य के मार्ग पर चलें। तू हरेक परिस्थिति में हमारी रक्षा करता आया है। इस बार भी आंधी-तूफान का रुख तूने ही बदला होगा, इसलिए आधा छप्पर ही टूटा वरना तो पूरी झोपड़ी ही नष्ट हो जाती। फिर उसने युवा साधु की ओर देखकर कहा, भाई, जो घटना घटी है उसका तू सीधा अर्थ ले। जीवन में विघ्न-बाधाएं आने पर भी जिसने धैर्य नहीं खोया और अपने भीतर जितना अधिक उत्साह पैदा किया, वह उतना ही महान बना। जीवन में सफलता के लिए हमें सदैव अपनी सोच सकारात्मक रखनी चाहिए।उसकी यह बात सुनकर युवा साधु उसके समक्ष नतमस्तक हो गया।