यूनान के महात्मा अफलातून ने मरते समय अपने बच्चों कोबुलाया और कहा - मैं तुम्हें चार-चार रत्न देकर मरना चाहता हूं। आशा है, तुम इन्हें संभालकर रखोगे एवं इन रत्नों से अपना जीवन सुखी बनाओगे। पहला रत्न मैं क्षमा का देता हूं - तुम्हारे प्रति कोई कुछ भी कहे, तुम उसे विस्मृत करते रहो व कभी उसके प्रतिकार का विचार अपने मन में न लाओ।
निरहंकार का दूसरा रत्न देते हुए समझाया कि अपने द्वारा किए गए उपकार को भूल जाना चाहिए।
तीसरा रत्न है- विश्वास, यह बात अपने हृदयपटल पर अंकित किए रखना कि मनुष्य के बूते कभीकुछ भला-बुरा नहीं होता, जो कुछ होता है वह सृष्टि के नियंता के विधान सेहोता है।
चौथा रत्न है, वैराग्य- यह सदैव ध्यान में रखना कि एक दिन सबको मरना है। सांसारिक संपत्ति पाकर तो लोग न जाने क्या-क्या करते हैं, लेकिन इन चार रत्नों का अनुसरण कर वे बच्चे तो मानो निहाल ही हो गए।