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Birsa Munda

Birsa Munda
बिरसा मुंडा, झारखंड के मुंडा विद्रोह के महानायक थे जिन्होंने आदिवासी समाज को संगठित करते हुए बाहरी ठेकेदारों और अंग्रेज़ अधिकारियों के खिलाफ उलगुलान यानि जंग की थी. बिरसा मुंडा को गिरफ्तार किया गया था तथा जेल में ही उनकी मृत्यु हो गयी थी.

बिरसा का महान व्यक्तित्व आज भी उन लोकगीतों में चमकता है, जिन्हें खूंटी से ले कर चक्रधरपुर तथा ओड़िसा के सुंदरगढ़ तक बड़े सम्मान के साथ याद किया जाता है.

क्योंकि इनका जन्म वीरवार के दिन हुआ था तो नाम रखा गया बिरसा. बिरसा का बचपन भी अन्य मुंडा बच्चों की तरह खेतों में काम करते हुए तथा नदी किनारे बाँसुरी बजाते हुए व्यतीत हुआ. थोड़ा बड़े हुए तो पढ़ाई के लिए चाईबासा के गोस्सनर स्कूल में प्रवेश ले लिया, जहां धर्मांतरण अनिवार्य था. धर्म बदलने पर नाम रखा गया डेविड पूर्ति (दाऊद). 

फिर एक दिन बिरसा पादरी से उलझ पड़े जब पादरी ने कहा कि हमने धर्मांतरण के बाद तुम आदिवासियों के लिए स्वर्ग का द्वार खोल दिया है. बालक बिरसा ने पलट कर कहा कि हमारे अच्छे खासे स्वर्ग को लूट कर हमें नरक जैसी ज़िन्दगी देने के बाद , कौन सा स्वर्ग देने वाले हो? इस घटना के बाद बिरसा का जो अंग्रेजों से मोह भंग हुआ तो बढ़ता ही चला गया. 

इसी बीच फारेस्ट एक्ट के तहत सिंहभूम के जंगलों की बंदोबस्ती कर के सरकार ने अपने कब्जे में ले लिया. आदिवासी जिन जंगलों में सदियों से मालिक के हैसियत से रहते थे, वहां किरायदार की तरह हो गए. बाकी कमी बाहर से आ बसे लकड़ी और बीड़ी पत्ता के ठेकेदारों ने पूरी कर दी. उस समय भारत का आदिवासी समाज एक ऐसे संक्रमण काल से गुज़र रहा था जिसके बाद आदिवासियों का अपनी सारी धरोहर खो कर मात्र एक मजदूर बनकर रह जाना लगभग तय था. इस स्थिति को बिरसा मुंडा ने भली भाँति भांप लिया था और उनको साफ दिख रहा था कि समय अब ज्यादा दूर नहीं है.
 
इस विकट परिस्थिति से निपटने के लिए बिरसा ने दोहरे वार की रणनीति बनायीं. इसके लिए बिरसा मुंडा ने पहले तो आदिवासियों को अपनी संस्कृति पर गर्व और स्वाभिमान करना सिखाया. शराब, जुआ आदि से जीवन में पड़ने वाले बुरे असर को समझाया. ईसाई धर्म परिवर्तन करने वालो द्वारा दिए जाने वाले  प्रलोभनों की रोकथाम के लिए भी कई प्रयास किये. 

बिरसा मुंडा के प्रवचनों को सुनने के लिए लोग दूर दूर से आने लगे. दमदार गठीला शरीर, मधुर वाणी और सरल व्यक्तित्व, मानों कोई देवता धरती पर अवतरित हुआ हो. इस 20 साल के नवयुवक बिरसा मुंडा की वाणी का लोगों पर इतना गहरा प्रभाव पड़ता था कि मनो वो कोई देवदूत हों. 

लोगों में अपनी आदिवासी अस्मिता के लिए आत्मविस्वास और स्वाभिमान का संचार करने के बाद, बिरसा ने “उलगुलान” यानि कि विद्रोह का बिगुल फूंक दिया और कई जगहों पर अंग्रेज़ सरकार तथा उनके ठेकेदारों पर एक साथ हमला शुरू कर दिया. ब्रिटिश सरकार ने काफी निर्दयता से इस विद्रोह को कुचलने का प्रयास किया. बिरसा मुंडा के बारे में सूचना देने के एवज में अंग्रेजी हुकूमत ने बड़ी धनराशि देने की भी घोषणा कर दी. अंततः बिरसा मुंडा अपने ही एक साथी की ग़द्दारी से गिरफ्तार कर लिए गए और जेल में ही उनकी मृत्य हो गई. 

अपनी छोटी सी आयु में लोगों के अंदर विश्वास और शक्ति का संचार करते हुए उन्हें अपनी धरती को बचाने का संदेश देने वाले बिरसा मुंडा को आज भी सही मायने में “धरती-आबा” माना जाता है. जिसने अपने जीवन के मात्र 25 वसंत देखे और जो कि अपने लोगों में “सिंह बोंगा” यानी स्वयं भगवान सूर्य का रूप माना जाता था, 

अनुज लुगुन कहते हैं कि आदिवासी विद्रोह के बारे में इतिहासकारों ने अक्सर दो गलतियां की हैं. पहली ये मान्यता कि आदिवासी विद्रोह अचानक ही किसी नियम या कानून की खिलाफत में खड़े होते थे. और दूसरी मान्यता ये कि ये कानून में संशोधन कर देने से ये विद्रोह अपने आप खत्म हो जाते थे. इस तरह हमने आदिवासी विद्रोह को कभी भी अन्य किसान विद्रोहों या नागरिक विद्रोहों के बराबर का दर्जा नहीं दिया.
 
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