Subhadra Kumari Chauhan
Subhadra Kumari Chauhan (1904 – February 15, 1948) was an Indian poetess famous for Hindi poems composed primarily in Veer Ras, one of the nine Ras' (English: Flavour/Subgenre).
Early life
Born in Nihalpur village in Allahabad District in Uttar Pradesh. She initially studied in the Crosthwaite Girls’ School in Allahabad and passed the middle-school examination in 1919.
After her marriage to Thakur Lakshman Singh Chauhan of Khandwa in the same year, she moved to Jabalpur.
Family
She had five children: Sudha Chauhan (now deceased), Ajay Chauhan (now deceased), Vijay Chauhan (now deceased), Ashok Chauhan (now deceased) and Mamta Chauhan (Bhargava),
currently residing in Buffalo, India. The widows of Ajay and Ashok Chauhan currently live in Jabalpur, Madhya Pradesh.
Career
Subhadra Kumari Chauhan joined the Non-Cooperation Movement in 1921 and was the first woman Satyagrahi to court arrest in Nagpur. She was jailed twice for her involvement in
protests against the British rule in 1923 and 1942.
Writing career
She has authored a number of popular works in Hindi poetry. Her most famous composition is Jhansi Ki Rani, an emotionally charged poem describing the life of Rani Lakshmi Bai.
The poem is one of the most recited and sung poems in Hindi literature. This and her other poems, Veeron Ka Kaisa Ho Basant, Rakhi Ki Chunauti, and Vida, openly talk about the
freedom movement. They are said to have inspired great numbers of Indian youth to participate in the Indian Freedom Movement. Here is the opening stanza of Jhansi ki Rani:
Original Hindi text:
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,
बूढ़े भारत में आई फिर से नयी जवानी थी,
गुमी हुई आज़ादी की कीमत सबने पहचानी थी,
दूर फिरंगी को करने की सबने मन में ठानी थी।
चमक उठी सन सत्तावन में, वह तलवार पुरानी थी,
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।
Roman transliteration using ITRANS:
simhasan hil uthe, rajavanshon ne bhrikuti tani thi,
boodhhe bharat mein aayi, phir se nayi jawaani thi,
gumi hui azadI ki keemat sab ne pahachani thi,
door firangi ko karne ki sab ne man mein thani thi.
chamak uthi san sattawan mein, woh talwaar puraani thi,
bundele harbolon ke munh ham ne sunI kahani thi,
khoob ladi mardani woh to jhansI wali rani thi.
English translation:
The thrones shook and royalties scowled
Old India was re-invigorated with new youth
People realised the value of lost freedom
Everybody was determined to throw the foreigners out
The old sword glistened again in 1857
This story we heard from the mouths of Bundel bards
Like a man she fought, she was the Queen of Jhansi
Subhadra Kumari Chauhan wrote in the Khariboli dialect of Hindi, in a simple, clear style. Apart from heroic poems, she also wrote poems for children. She wrote some short stories
based on the life of the middle class too.
Death
She died in 1948 in a car accident near Kalbodi (in Seoni, Madhya Pradesh). An Indian Coast Guard ship has been named after her. A Statue of Subhadra Kumari Chauhan has been
installed by the Madhya Pradesh Government in front of the Municipal Corporation office of Jabalpur.
Works
Collections of poems
Tridhara
Mukul (1930)
Yeh Kadamb Ka Ped
These anthologies consist some of the well-known poems like Jhansi ki Raani, Veeron Ka Kaisa Ho Basant and Yeh Kadamb Ka Ped.
Seedhe-Saade Chitra (1946)
Seedhe-saade Chitra(1946)
Mera naya bachpan(1946)
सुभद्रा कुमारी चौहान
सुभद्रा कुमारी चौहान (१६ अगस्त १९०४-१५ फरवरी १९४८) हिन्दी की सुप्रसिद्ध कवयित्री और लेखिका थीं। उनका जन्म नागपंचमी के दिन इलाहाबाद के निकट निहालपुर नामक गांव में रामनाथसिंह के जमींदार परिवार में हुआ था। बाल्यकाल से ही वे कविताएँ रचने लगी थीं। उनकी रचनाएँ
राष्ट्रीयता की भावना से परिपूर्ण हैं। उनके दो कविता संग्रह तथा तीन कथा संग्रह प्रकाशित हुए पर उनकी प्रसिद्धि झाँसी की रानी कविता के कारण है। ये राष्ट्रीय चेतना की एक सजग कवयित्री रही हैं, किन्तु इन्होंने स्वाधीनता संग्राम में अनेक बार जेल यातनाएँ सहने के पश्चात अपनी
अनुभुतियों को कहानी में भी व्यक्त किया। वातावरण चित्रण-प्रधान शैली की भाषा सरल तथा काव्यात्मक है, इस कारण इनकी रचना की सादगी हृदयग्राही है।
जीवन परिचय
सुभद्रा कुमारी चौहान, चार बहने और दो भाई थे। उनके पिता ठाकुर रामनाथ सिंह शिक्षा के प्रेमी थे और उन्हीं की देख-रेख में उनकी प्रारम्भिक शिक्षा भी हुई। १९१९ में खंडवा के ठाकुर लक्षमण सिंह के साथ विवाह के बाद वे जबलपुर आ गई थीं। १९२१ में गांधी जी के असहयोग आंदोलन
में भाग लेने वाली वह प्रथम महिला थीं। वे दो बार जेल भी गई थीं। सुभद्रा कुमारी चौहान की जीवनी, इनकी पुत्री, सुधा चौहान ने 'मिला तेज से तेज' नामक पुस्तक में लिखी है। इसे हंस प्रकाशन, इलाहाबाद ने प्रकाशित किया है। वे एक रचनाकार होने के साथ-साथ स्वाधीनता संग्राम
की सेनानी भी थीं। डॉo मंगला अनुजा की पुस्तक सुभद्रा कुमारी चौहान उनके साहित्यिक व स्वाधीनता संघर्ष के जीवन पर प्रकाश डालती है। साथ ही स्वाधीनता आंदोलन में उनके कविता के जरिए नेतृत्व को भी रेखांकित करती है। १५ फरवरी १९४८ को एक कार दुर्घटना में उनका
आकस्मिक निधन हो गया था।
कथा साहित्य
बिखरे मोती उनका पहला कहानी संग्रह है। इसमें भग्नावशेष, होली, पापीपेट, मंझलीरानी, परिवर्तन, दृष्टिकोण, कदम के फूल, किस्मत, मछुये की बेटी, एकादशी, आहुति, थाती, अमराई, अनुरोध, व ग्रामीणा कुल १५ कहानियां हैं! इन कहानियों की भाषा सरल बोलचाल की भाषा है! अधिकांश
कहानियां नारी विमर्श पर केंद्रित हैं! उन्मादिनी शीर्षक से उनका दूसरा कथा संग्रह १९३४ में छपा! इस में उन्मादिनी, असमंजस, अभियुक्त, सोने की कंठी, नारी हृदय, पवित्र ईर्ष्या, अंगूठी की खोज, चढ़ा दिमाग, व वेश्या की लड़की कुल ९ कहानियां हैं! इन सब कहानियो का मुख्य स्वर
पारिवारिक सामाजिक परिदृश्य ही है! सीधे साधे चित्र सुभद्रा कुमारी चौहान का तीसरा व अंतिम कथा संग्रह है! इसमें कुल १४ कहानियां हैं! रूपा, कैलाशी नानी, बिआल्हा, कल्याणी, दो साथी, प्रोफेसर मित्रा, दुराचारी व मंगला ८ कहानियों की कथावस्तु नारी प्रधान पारिवारिक सामाजिक समस्यायें
हैं ! हींगवाला, राही, तांगे वाला, एवं गुलाबसिंह कहानियां राष्ट्रीय विषयों पर आधारित हैं। सुभद्रा कुमारी चौहान ने कुल ४६ कहानियां लिखी, और अपनी व्यापक कथा दृष्टि से वे एक अति लोकप्रिय कथाकार के रूप में हिन्दी साहित्य जगत में सुप्रतिष्ठित हैं!
सम्मान पुरस्कार
भारतीय तटरक्षक सेना ने २८ अप्रैल २००६ को सुभद्राकुमारी चौहान की राष्ट्रप्रेम की भावना को सम्मानित करने के लिए नए नियुक्त एक तटरक्षक जहाज़ को सुभद्रा कुमारी चौहान का नाम दिया है। भारतीय डाकतार विभाग ने ६ अगस्त १९७६ को सुभद्रा कुमारी चौहान के सम्मान में २५
पैसे का एक डाक-टिकट जारी किया है।
कृतियाँ
कहानी संग्रह- बिखरे मोती, उन्मादिनी, सीधे साधे चित्र
कविता संग्रह- मुकुल और त्रिधारा