एक गुरू और शिष्य कहीं जा रहे थे। चलते-चलते रास्ते में जंगल आ गया। गुरू एक वृक्ष के नीचे बै कर ध्यानलीन हो गए। शिष्य बै ा था। उसने देखा, एक शेर उधर ही आ रहा है। भयभीत होकर वह वृक्ष पर चढ़ गया। शेर आया। गुरू को सूंघा और चला गया। शिष्य पेड़ से उतरा। गुरू ने ध्यान पूरा किया और दोनों आगे चल पड़े।
कुछ दूर गए ही थे कि गुरू को एक मच्छर ने काटा गुरू ने उसे हटाया। कान को खुजलाया और बोले, "कितना दर्द हो रहा
है?" शिष्य बोला, "गुरूदेव! यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही है। शेर आया, तब आप शान्त बै े थे और एक छोटे से मच्छर के काटने से आप तिलमिला उ े। इसका कारण क्या है?"
गुरू ने कहा, "पहले जब शेर आया था, तब मैं अपनी आत्मा के साथ था, अपने प्रभु के साथ था और अब मैं तुम्हारे साथ हूं। इसका प्रतिपाद्य यह है कि जब कोई अपने आपके साथ नहीं होता, दूसरे के साथ होता है, तब उसे हर तरह की क िनाइयों का अनुभव होता है। जब वह अपने आपके साथ होता है, तब उसे कोई समस्या नहीं होती है, कोई क िनाई नहीं होती है।"
वास्तव में सारी समस्याओं का मूल है- द्वैत। आदमी अकेला तब होता है, जब अहंकार का बन्धन टूट जाता है, जब आत्मा की सन्निधि प्राप्त हो जाती है। अकेले में दु:ख नहीं होता। वहां डर भी नहीं होता। जो आत्मा में लीन हो गया, वह किससे डरेगा? उसको कौन दु:ख दे सकता है? अहंकार रहित होने और स्व पर दृष्टि होने पर आदमी निर्भय हो जाता है। इसलिए निर्भय बनो - निश्चिन्त जियो