सूर्य ग्रह पीड़ा निवारण यंत्र
6 | 1 | 8 | जय |
7 | 5 | 3 | जय |
2 | 2 | 4 | जय |
नम: | नम: | नम: | नम: |
उपरोक्त यंत्र को अष्टगंध की स्याही और मोर के पंख से कागज़ पर लिखना चाहिए | लिखने का समय रविवार और होरा नक्षत्र में धारण करना चाहिए | इस यंत्र के धारण करने से सूर्य ग्रह का आप पर कुप्रभाव लगभग समाप्त हो जाता हैं |
7 | 2 | 9 | नम: |
8 | 6 | 4 | नम: |
3 | 10 | 5 | नम: |
चन्द्र | देव नम: | नम: | नम: |
उपरोक्त यंत्र को अष्टगंध, अनार की कलम से भोजपात्र पर सोमवार के दिन रोहिणी में नक्षत्र में धारण करे तो चन्द्रमा जनित कष्टों का समन होता हैं |
मंगल ग्रह पीड़ा निवारण यंत्र
8 | 3 | 10 |
9 | 7 | 5 |
4 | 11 | 6 |
नम: | नम: | नम: |
इस यंत्र को मंगलवार को लाल चन्दन, अनार की कलम से भोजपत्र लिखें तथा मंगलवार के दिन ही होरो या अनुराधा नक्षत्र में धारण करे तो मंगल के द्वारा प्रदत्त कष्टों का समन होता हैं |
बुध ग्रह पीड़ा निवारण यंत्र
9 | 4 | 11 | 0 |
10 | 8 | 6 | 0 |
5 | 12 | 7 | 0 |
0 | 0 | 0 | 0 |
उपरोक्त यंत्र को बुधवार को अनार की कलम, अष्टगंध से भोजपत्र पर लिखे और उसी दिन उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में धारण करे |
ब्रहस्पति ग्रह पीड़ा निवारण यंत्र
10 | 5 | 12 |
11 | 9 | 7 |
6 | 13 | 8 |
इस यंत्र को गोरोचन से अनार की कलम से भोजपत्र पर वीरवार के दिन लिखें और उसी दिन तावीज़ में भरकर भरणी नक्षत्र में धारण करे |
शुक्र ग्रह पीड़ा निवारण यंत्र
11 | 6 | 13 |
12 | 10 | 8 |
7 | 14 | 9 |
इस यंत्र को अष्टगंध से अनार की कलम द्वारा भोजपत्र पर शुक्रवार के दिन निर्माण करे मृगशिरा नक्षत्र में धारण करें | इससे शुक्र द्वारा जनित कष्टों का निवारण होता हैं|
शनि ग्रह पीड़ा निवारण यंत्र
12 | 7 | 15 |
13 | 11 | 9 |
8 | 15 | 10 |
इस यंत्र को शनिवार के दिन अष्टगंध एवं अनार की कलम से भोजपत्र पर लिखकर उसी दिन श्रवण नक्षत्र और शनि की होरो में धारण करें | शनि जनित कष्टों से छुटकारा दिलाने में यह यंत्र परम सहायक हैं |
राहू ग्रह पीड़ा निवारण यंत्र
13 | 8 | 15 |
14 | 12 | 10 |
9 | 16 | 11 |
इस यंत्र को रविवार को भोजपत्र पर अष्टगंध की स्याही और अनार की कलम द्वारा लिखें, तथा उसी दिन रवि की होरो में उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में धारण करे तो राहु जनित सभी प्रकार की पीडाओ का निवारण होता हैं |
15 | 9 | 16 |
15 | 31 | 11 |
10 | 17 | 12 |
शुक्ल पक्ष के रविवार के दिन इस यंत्र को अष्टगंध की स्याही द्वारा अनार की कलम से लिखें तथा रविवार को पुष्य नक्षत्र तथा सूर्य की होरो में धारण करे, तो केतु के कोप के कारण होने वाले सभी कष्टों से छुटकारा पाया जा सकता हैं |
(1) सूर्य देव का मन्त्र:
ह्रीं _____ सूर्य आदित्य श्री ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं सः सूर्याय नमः |
सूर्य देव की कृपा के लिए नित्य प्रातःकाल निम्नलिखित मन्त्रों की एक माला अवश्य जपें , बहुत लाभकारी होती है |
(2) श्री चन्द्र देव का मंत्र :
जिस व्यक्ति की कुंडली में चंद्रदेव की स्थिति कष्टप्रद हो, उसे इस मंत्र का जप करना चाहिए |
• मन्त्र - ' सों सोमाय नमः |
• ॐ श्रां श्री श्रूँ सः चन्द्राय नमः |
(3) श्री मंगल मन्त्र :
मंगल-गृह जनित पीड़ा से त्राण पाने के लिए मंगल का मन्त्र जपने से कष्ट दूर हो जाता है |
• मन्त्र - ॐ हां हं सः खं खः |
• ॐ क्रां क्रीं क्रौं सः भौमाय नमः
(4) श्री बुध मन्त्र :
बौधिक - शक्ति के असंतुलन और संबर्धन में बुध-गृह का मह्त्त्बपूर्ण योग रहता है l उनकी कृपा पाने के लिए मन्त्र का जप लाभदायक होता है l
मन्त्र - ॐ ब्रा ब्री ब्रो स: बुधाय: नमः l
(5) श्री ब्रहस्पति मन्त्र :
संतान- सुख, ज्ञान, प्रतिस्था और वैभव के लिए गुरुदेव की कृपा इस मन्त्र जप द्वारा अर्जित की जा सकती है l
मन्त्र- ॐ ब्री ब्रह्स्पते नमः l
ॐ ग्रां ग्री ग्रो स: गुरुवे l
(6) शुक्र मन्त्र :
कला, शिल्प, सोदर्ये, बौधिक-समृधि, प्रभाव, ज्ञान, राजनीती, समाज- छेत्र और मान- प्रतिस्था- यह सभी भौतिक- विधान शुक्र-देवता की कृपा से प्रयाप्त हो सकता है l उनकी साधना के लिए यह मन्त्र (20 हजार ) जपना चाहिए-
मंत्र - ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नमः l
ॐ वस्त्रं मे देहि शुक्राय नमः l
(7) श्री शनि मन्त्र :-
शनि देव का प्रकोप विशव- विदित है l सामान्य देवता ही नहीं, बल्कि इन्द्रराज तक उनसे भयभीत रहते है l किन्तु यदि शनि देव कृपालु हो जाए तो वे विशव की सुख-संपदा भक्त को प्रदान कर सकते है । यदपि ऐसा कम ही होता है , तो भी मन्त्र-जप (10 हजार ) से उनकी प्रतिकूलता शांत हो जाती है ।
मन्त्र - ॐ शं शनेशचराय नमः ।
ॐ प्रां प्रीं प्रो स: शनेशचराय नमः ।
(8) राहु मन्त्र :-
यधपि राहु- केतु छाया- गृह माने जाते है । तो भी इनकी अत्यंत पीड़ाकारक होती है । अत: मन्त्र जप द्वारा इनकी विरोधी गति की भी शांत किया जाता है । राहु- मन्त्र का जप गुरूवार से प्रारम्भ करना चाहिए।
मन्त्र : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः राहवे नमः।
(9) केतु मन्त्र :
केतु-गृह की स्थिति भी ठीक राहु जैसी है । इनकी शांति के लिए शुक्रवार से मन्त्र जप प्रारम्भ किया जाता है ।
मन्त्र - ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं सः केतवे नमः