चार ऋण व भुगतान(निवारण)
मानव जीवन प्राप्त होने पर हम पर चार "ऋण" बताये गए हैं जिनका भुगतान(निवारण) हर व्यक्ति को करना चाहिए|
पितृ ऋण-पुत्र के द्वारा श्राद करने से निवारण होता हैं इसलिए पुत्र की कामना की जाती हैं |
देवता ऋण -यज्ञ या हवन आदि करके निवारण होता हैं |
ऋषि ऋण -स्वाध्याय व तपस्या से निवारण होता हैं |
मनुष्य ऋण -परोपकार करने से निवारण होता हैं |
यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह हैं की इन सभी ऋणों का निवारण बिना गृहस्थ जीवन जीए नही हो सकता हैं| इसलिए गृहस्थ जीवन को सबसे बड़ा कहा गया
पितृ ऋण-पुत्र के द्वारा श्राद करने से निवारण होता हैं इसलिए पुत्र की कामना की जाती हैं |
देवता ऋण -यज्ञ या हवन आदि करके निवारण होता हैं |
ऋषि ऋण -स्वाध्याय व तपस्या से निवारण होता हैं |
मनुष्य ऋण -परोपकार करने से निवारण होता हैं |
यहाँ ध्यान देने योग्य तथ्य यह हैं की इन सभी ऋणों का निवारण बिना गृहस्थ जीवन जीए नही हो सकता हैं| इसलिए गृहस्थ जीवन को सबसे बड़ा कहा गया