भगवान श्री राम की पहचान भरत के लिए एक आदर्श भाई के रूप में, हनुमान जी के लिए एक स्वामी, प्रजा के लिए नीति-निपुण एवं न्यायप्रिय शासक, सुग्रीव व केवट के परम स्नेही मित्र और सेना को अपने साथ लेकर चलने वाले महान व्यक्तित्व के रूप में की जाती है।
उनके यही सद गुण उनको मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से पूजनीय बनाते है। विषम परिस्थितियों में भी भगवान श्री राम सदैव नीति सम्मत रहे। वेदों और मर्यादाओं का श्रेष्ठता से पालन करते हुए उन्होंने एक ऐसे सुखी राज्य की स्थापना की जो आज भी एक आदर्श राज रामराज्य के नाम से जाना जाता है। अपनी निजी इच्छाओं व सुखों का त्याग करके सदैव न्याय और सत्य का उन्होंने साथ दिया। बात फिर चाहे राज्य को त्यागने की हो, बाली का वध करने की हो, रावण का संहार करने की हो या फिर राजा राम बनकर पत्नी सीता को वन भेजने की ही क्यों न हो।
करुणामयी राम : - भगवान श्री राम ने सब पर दया भी की और सभी को अपनी शरण में भी लिया। श्री राम की सेना में पशुओ, मनुष्यों व दानवों तक सभी सम्मिलित थे और उन्होंने सभी को आगे बढ़ने का पूरा अवसर भी दिया। सुग्रीव को उनका राज्य वापस दिलाया, हनुमान, जाम्बवंत व नल-नील को भी उन्होंने समय-समय पर नेतृत्व करने का अवसर प्रदान किया।
परम स्नेही मित्र राम :- केवट हो अथवा सुग्रीव, निषादराज हो या विभीषण। हर जाति, हर वर्ग के मित्रों के साथ भगवान श्री राम ने सच्चे हृदय से स्नेह सम्बंंध बनाया। अपने मित्रों के लिए भी उन्होंने स्वयं कई संकटो का सामना किया। केवल यही नहीं शबरी के झूठे बेर खाकर प्रभु श्रीराम ने भक्त और भगवान् के पावन सम्बन्ध एक मिसाल स्थापित की।
धैर्यशाली श्रीराम :- सहनशीलता एवं धैर्यवान होना भी भगवान श्रीराम का एक श्रेष्ठ गुण है। माता कैकेयी की आज्ञा से चौदह वर्ष के लिए वन में चले जाने का निर्णय हो, समुद्र पर सेतु निर्माण के लिए तपस्या करना हो, सीता माता के चले जाने पर राजा होकर भी एक संन्यासी की भांति जीवन व्यतीत करना उनकी सहनशक्ति के बेहतरीन उदाहरण है।
समर्पण और त्याग :- भगवान श्री राम के तीन भाई लक्ष्मण, भरत व शत्रुघ्न सौतेली मां के पुत्र थे, किन्तु सभी भाइयों के प्रति सहोदर भाई से भी अधिक त्याग और समर्पण का भाव रखकर श्री राम ने उनको स्नेह दिया। श्री राम का ये आदर्श भ्रात प्रेम ही वो कारण था जिसकी वजह से वनवास के समय लक्ष्मण उनके साथ वन गए और श्री राम के वन में चले जाने से राजगद्दी मिलने पर भी भरत ने भगवान श्री राम के मूल्यों को सदैव ध्यान में रखा। सिंहासन पर श्री राम चंद्र जी की चरण पादुका रख कर एक आदर्श स्थापित किया और प्रजा की सेवा की।
श्रेष्ठ प्रबंधक :- भगवान श्री राम न केवल एक कुशल प्रबंधक थे, अपितु सभी को साथ लेकर चलने वाले भी थे। वे विकास का अवसर सभी को प्रदान करते थे। श्रीराम सीमित संसाधनों का बेहतर उपयोग करना जानते थे। लंका जाने के लिए अपनी सेना से पत्थरों के सेतु का मिर्माण कराकर उन्होंने इसका सर्वश्रेष्ठ उदहारण प्रस्तुत किया।