“आनन्द रामायण” में कथा आती है कि 14 वर्ष के वनवास के बाद जब भगवान् श्रीरामचन्द्रजी का राज्याभिषेक हो गया तो एक दिन आनंदोत्सव चल रहा था । उस समय सभा का एक व्यक्ति नर्तकी का नृत्य देखकर जोर से हँस पड़ा । हँसी सुन कर रामजी को रावण-युद्ध की बात याद आ गयी । जब वे रावण के मस्तकों को काटकर आकाश में उड़ा देते थे, तो वे मस्तक भयानक दाँतों को दिखाकर हँसते हुए नीचे गिरते थे । रामजी जब भी किसीका हास्य सुनते, तो उनकी आँखों के सामने वही दृश्य घूमने लगता था । अतः रामजी ने आदेश दिया कि “हमारे राज्य में कोई नहीं हँसेगा । जो हँसेगा उसे दंड दिया जायेगा ।”
अब तो सभी ने हँसना छोड़ दिया । कोई भी पुरवासी एवं देशवासी रामजी के दण्ड-भय से एकांत में भी नहीं हँसता था । ऐसा वर्ष भर चलता रहा ।
हँसना बंद होने से उकताहट होने लगी । प्रसन्नता के देवता जो चित्त में रहते हैं, इन्द्र के पास जाकर अपनी व्यथा बताकर बोले, “हमारे पर ाकुरजी ने बंदिश लगा दी है । सृष्टि-क्रम में तो हँसी की भी जरुरत है । इससे कर्मांग पूजनादि सत्कार्य लुप्त होते जा रहे हैं । देवेन्द्र ! हम हँसी के देवता धरती से चले जायें, यह कैसे सम्भव हो सकता है ! आप कुछ करिये ।”
इन्द्र ने ब्रह्माजी के पास जाकर यह बात बतायी । ब्रह्माजी ने सोचा कि ‘रामजी को उपदेश द्वारा अथवा दूसरा कुछ करके उनका कायदा तो रद्द नहीं किया जा सकता है । इसलिये अब ‘राम’ में ही विश्राम पाओ ।’
रमन्ते योगिनः यस्मिन् सः रामः ।
‘जिसमें योगी लोगों का मन रमण करता है, उस अंतर्यामी को कहते हैं “राम” ।’
ब्रह्माजी को युक्ति सुझ गयी । वे अयोध्या की सीमा पर एक विशाल पीपल के वृक्ष में आकर प्रविष्ट हो गये और उस रास्ते से आने-जानेवाले लोगों को देखकर जोरों से हँसने लगे । लकड़हारे पीपल के वृक्ष के नीचे आकर थकान मिटाते थे । अन्य पेड़ों की अपेक्षा पीपल के पेड़ के नीचे थकान जल्दी मिटती है और बुद्धि सूझबुझ की धनी बन जाती है ।
एक लकड़हारा वृक्ष के नीचे आया तो पीपल के भीतर बै े ब्रह्माजी हँसे, जिससे वह भी खिलखिलाकर हँसा और लकड़ी का बोझा लिये अयोध्या नगरी में जा पहुँचा । रास्ते में उसे पीपल की हँसी की याद आयी, तो फिर से हाका लगाकर हँसने लगा ।
चौराहे पर खड़े सिपाही ने देखा तो सिपाही भी हँसने लगा । सिपाही जब राजसभा में गया तो लकड़हारे की हँसी याद आयी और वह हँस पड़ा, किन्तु हँसी संक्रामक होती है । अतः सिपाही को हँसते देख सभा में बै े सभी लोग जोर से हँसने लगे । सभी लोगों को हँसता देखकर रामजी भी हँसने लगे । रामजी तुरंत हँसी रोककर सोचने लगे कि ‘दूसरे लोग हँसे तो हँसे, मैं क्यों हँसा ?’ लेकिन क्षणभर बाद रामजी को फिर से हँसी आ गयी । रामजी ने सभा के लोगों से पूछाः “आप क्यों हँसे ?”
सभा के लोगों ने कहाः “हम सिपाही को देखकर हँसने लगे थे ।” सिपाही ने कहाः “मैं लकड़हारे को देखकर हँसा ।” लकड़हारे ने कहाः “मैं पीपल की हँसी से हँसा ।” और रामजी ने सैनिकों को उस वृक्ष को काटने की आज्ञा दे दी । सैकड़ों-हजारों लोग वृक्ष को काटने के लिए गये, लेकिन ब्रह्माजी ने उन सबको पत्थर फेंककर भगा दिया । ऐसा करते-करते रामजी ने सुमंत, लव-कुश और शत्रुघ्न को भेजा । परन्तु सुमंत बेहोश हो गये, लव-कुश और शत्रुघ्न के रथ के घोड़े बै गये ।
यह सुनकर रामजी गुरु वशिष् जी की शरण में गये । वशिष् जी ने समस्या-समाधान के लिए वाल्मीकिजी को बुलवाया । वाल्मीकिजी सारी घटना रामजी को बताकर बोलेः “यदि आप सदा के लिए लोगों का हँसना रोक देंगे तो बड़ा अनर्थ हो जायेगा । आप कोई ऐसा उपाय कीजिये, जिससे देवता तथा मनुष्य सभी प्रसन्न रहें । हँसी सबको सुख देनेवाली, मंगलमयी और लक्ष्मी-सूचक है । हँसी से बढ़कर कोई चीज है ही नहीं । हे रघुनंदन ! वही पुरुष धन्य है, जिसका मुखमण्डल सदा हँसता हुआ दिखता है और वह पुरुष अधम है, जिसका मुख सदा क्रोध से युक्त रहता है । अतः आप मेरी यह बात मान लीजिये ।”
रामजी आज्ञा शिरोधार्य करते हुए बोलेः ” हे मुनिवर ! आप जैसा कहते हैं, वैसा ही होगा ।” तब से हँसी पर से रोक हट गयी और प्रजा में आनंद-उल्लास छा गया ।
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