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अक्षय तृतीया का महत्व क्यों है

 

आज ही के दिन जैन के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव जी भगवान ने 13 महीने का कठीन निरंतर उपवास (बिना जल का तप) का पारणा (उपवास छोडना) इक्षु (गन्ने) के रस से किया था। और आज भी बहुत जैन भाई व बहने वही वर्षी तप करने के पश्चात आज उपवास छोड़ते है और नये उपवास लेते है। और भगवान को गन्ने के रस से अभिषेक किया जाता है।।

आज ही के दिन माँ गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था।
महर्षी परशुराम का जन्म आज ही के दिन हुआ था।
माँ अन्नपूर्णा का जन्म भी आज ही के दिन हुआ था।
द्रोपदी को चीरहरण से कृष्ण ने आज ही के दिन बचाया था।
कृष्ण और सुदामा का मिलन आज ही के दिन हुआ था।
कुबेर को आज ही के दिन खजाना मिला था।
सतयुग और त्रेता युग का प्रारम्भ आज ही के दिन हुआ था।
ब्रह्मा जी के पुत्र अक्षय कुमार का अवतरण भी आज ही के दिन हुआ था।
प्रसिद्ध तीर्थ स्थल श्री बद्री नारायण जी का कपाट आज ही के दिन खोला जाता है।
बृंदावन के बाँके बिहारी मंदिर में साल में केवल आज ही के दिन श्री विग्रह चरण के दर्शन होते है। अन्यथा साल भर वो बस्त्र से ढके रहते है।
इसी दिन महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ था।
अक्षय तृतीया अपने आप में स्वयं सिद्ध मुहूर्त है। कोई भी शुभ कार्य का प्रारम्भ किया जा सकता है।।

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