आपको बताता हूँ की कैसे भगवान हमें याद करते है और हम उनकी बात नहीं सुन पाते ।
किसी निर्माणाधीन भवन की सातवीं मंजिल से ठेकेदार ने नीचे काम करने वाले मजदूर को आवाज दी ! निर्माण कार्य की तेज आवाज के कारण मजदूर कुछ सुन न सका कि उसका ठेकेदार उसे आवाज दे रहा है ! ठेकेदार ने उसका ध्यान आकर्षित करने के लिए एक 1 रुपये का सिक्का नीचे फैंका, जो ठीक मजदूर के सामने जा कर गिरा ! मजदूर ने सिक्का उठाया और अपनी जेब में रख लिया, और फिर अपने काम मे लग गया ! अब उसका ध्यान खींचने के लिए सुपर वाईजर ने पुन: एक 5 रुपये का सिक्का नीचे फैंका ! फिर 10 रु. का सिक्का फेंका उस मजदूर ने फिर वही किया और सिक्के जेब मे रख कर अपने काम मे लग गया ! ये देख अब ठेकेदार ने एक छोटा सा पत्थर का टुकड़ा लिया , और मजदूर के उपर फैंका जो सीधा मजदूर के सिर पर लगा ! अब मजदूर ने ऊपर देखा और ठेकेदार से बात चालू हो गयी ! ऐसी ही घटना हमारी जिन्दगी मे भी घटती रहती है... भगवान हमसे संपर्क करना, मिलना चाहता है, लेकिन हम दुनियादारी के कामों में इतने व्यस्त रहते हैं, की हम भगवान को याद नहीं करते ! भगवान हमें छोटी छोटी खुशियों के रूप मे उपहार देता रहता है, लेकिन हम उसे याद नहीं करते, और वो खुशियां और उपहार कहाँ से आये ये ना देखते हुए, उनका उपयोग कर लेते है, और भगवान को याद ही नहीं करते! भगवान् हमें और भी खुशियों रूपी उपहार भेजता है, लेकिन उसे भी हम हमारा भाग्य समझ कर रख लेते हैं, भगवान् का धन्यवाद नहीं करते, उसे भूल जाते हैं ! तब भगवान् हम पर एक छोटा सा पत्थर फैंकते हैं, जिसे हम कठिनाई, तकलीफ या दुख कहते हैं, फिर हम तुरन्त उसके निराकरण के लिए भगवान् की ओर देखते है, याद करते हैं ! यही जिन्दगी मे हो रहा है. यदि हम हमारी छोटी से छोटी ख़ुशी भी भगवान् के साथ उसका धन्यवाद देते हुए बाँटें, तो हमें भगवान् के द्वारा फैंके हुए पत्थर का इन्तजार ही नहीं करना पड़ेगा |