प्राय:हिंदू परिवारों में किसी भी शुभ कार्य में"तिलक या टीका"लगाने का विधान हैं यह तिलक कई वस्तुओ व पदार्थो से लगाया जाता हैं जिनमे हल्दी,सिन्दूर,केशर,भस्म,व चंदन आदि प्रमुख हैं परन्तु क्या आप जानते हैं की इस तिलक लगाने के पीछे कौन सा वैज्ञानिक कारण है ?
तिलक लगाने से एक तो स्वभाव में सुधार आता हैं व देखने वाले पर सात्विक प्रभाव पड़ता हैं | तिलक जिस भी पदार्थ का लगाया जाता हैं उस पदार्थ की ज़रूरत अगर शरीर को होती हैं तो वह भी पूर्ण हो जाती हैं इसी कारण से पंडित व गुणीजन व्यक्ति विशेष को देखकर उसे किस पदार्थ का तिलक लगाना हैं यह बताते हैं| ये तो था साधारण विज्ञान |
अब आगे का विज्ञान जानकर आप को शकून जरूर मिलेगा कि हमारी सभ्यता सर्वश्रेष्ठ है |
तिलक की खोज पुरातन खोज है | हमारे परातन समय मे गुरु -आश्रमों मे परमात्मा की प्राप्ति के लिये ध्यान की प्रक्रिया में साधक का ध्यान लगातार दसवें द्वार पर बना रहे -इसके लिये ही तिलक की खोज की गयी थी !
तिलक की सामग्री भी कुछ ऐसी थी —जिससे तीसरी आँख पर बार-बार ध्यान एकत्र होता रहे - जैसे कि चन्दन माथे पर ठण्डक पहुंचाता है , कुमकम से खिंचाव महसूस होता है , हल्दी व चन्दन की खुश्बू से आध्यात्मिक वातावरण बना रहे ; इन सब खूबियों वाले पदार्थों के मिश्रण से ही टीका बनाया जाता है !
विशेष वैज्ञानिक पहलू →
जिन मुल्कों में तिलक का उपयोग नहीं हुआ वे ऐसे मुल्क हैं जिनको ' थर्ड आई' का कोई पता नहीं है, यह आपको खयाल होना चाहिए। जिन—जिन मुल्कों को तीसरी आंख का थोड़ा भी अनुमान हुआ उन्होंने तिलक का उपयोग किया। जिन मुल्कों को कोई पता नहीं है, वे तिलक नहीं खोज पाए। तिलक खोजने का कोई आधार नहीं था, इसे समझ लें थोड़ा। यह आकस्मिक नहीं है कि कोई समाज उठे और एकदम से टीका लगाकर बैठ जाए, वह पागल नहीं है। अकारण, माथे के इस बीच के बिन्दु पर ही तिलक लगाने की सूझ का कोई कारण भी तो नहीं है, यह कहीं और भी तो लगाया जा सकता है। इसलिए आकस्मिक नहीं है, इसके पीछे कारण हो तो टिक सकता है।
और भी दो—तीन बातें इस संबंध में कहें कि आपने कभी खयाल न किया होगा, जब भी आप चिन्ता में होते हैं तब आपकी तीसरी आंख पर जोर पड़ता है, इसलिए माथा पूरा का पूरा सिकुड़ता है। उसी जगह जोर पड़ता है, जहां तिलक है। बहुत चिन्ता करने वाले, बहुत विचार करने वाले लोग, बहुत मननशील लोग, अनिवार्य रूप से माथे पर बल डालकर उस जगह की खबर देते हैं।
और जिन लोगों ने, जैसा पीछे मैंने कहा, पिछले जन्मों में कुछ भी तीसरी आंख पर जोर किया है, उनके जन्म के साथ ही उनके माथे पर अगर आप हाथ फेरे तो आपको तिलक की प्रतीति होगी। उतना हिस्सा थोड़ा—सा धंसा हुआ होगा—थोड़ा सा, किंचित, ठीक तिलक जैसा धंसा हुआ होगा। दोनों तरफ के हिस्से थोड़े उभरे हुए होंगे, ठीक उस जगह पर जहां पिछले जन्मों में मेहनत की गयी है। और वह आप, अंगूठा लगाकर, आंख बन्द करके भी पहचान सकते हैं। वह जगह आपको अलग मालूम पड़ जाएगी। तिलक हो या टीका—टीका तिलक का ही विशेष उपयोग है। लेकिन दोनों के पीछे तीसरी आंख छिपी हुई है।
हिप्रोटिस्ट एक— छोटा—सा प्रयोग करते हैं। चारकाट फ्रांस में एक बहुत बड़ा मनस्विद हुआ है जिसने इस बात पर बहुत काम किए। आप भी छोटा—सा प्रयोग करेंगे तो आपको भी चारकाट की बात ठीक से समझ में आ जाएगी। अगर आप किसी के सामने, उसके माथे पर दोनों आंखें गड़ाकर देखें, तो वह आदमी आपको गड़ाने न देगा। अगर आप किसी के माथे पर दोनों आंखें गड़ाकर देखें तो वह आदमी जितना क्रुद्ध होगा उतना और किसी चीज से नहीं होगा। पर वह अशिष्ट व्यवहार है, वह आप कर नहीं पाएंगे। सामने से तो वह स्थान बहुत निकट है, वह सिर्फ डेढ़ इंच के फासले पर है।
अगर आप किसी के माथे पर, पीछे से भी दृष्टि रखें तो भी आप हैरान हो जाएंगे। रास्ते पर आप चल रहे हैं, कोई आदमी आपके आगे चल रहा है, आप ठीक जहां माथे पर यह तिलक का बिन्दु है, ठीक उसके आर—पार अगर हम एक छेद करें तो पीछे जहां से छेद निकलता हुआ मालूम पड़े, अनुमान करके, उस जगह दोनों आंखें गड़ा लें। और आप कुछ ही सेकेंड आंख गड़ा पाएंगे कि वह आदमी लौटकर आपको देखेगा।
अगर ठीक तीसरी आंख पर तिलक लगा दिया जाये, उसी मात्रा, उतने ही अनुपात का तिलक लगा दिया जाए, ठीक जितनी बड़ी तीसरी आंख की स्थिति है, तो आपको पूरा शरीर छोड्कर उसी का स्मरण चौबीस घण्टे रहने लगेगा। वह स्मरण पहला तो यह काम करेगा कि आपका शरीर—बोध कम होता जाएगा, और तिलक—बोध बढ़ता जाएगा। एक क्षण ऐसा आ जाता है जब कि पूरे शरीर में सिर्फ तिलक ही स्मरण रह जाता है, बाकी सारा शरीर भूल जाता है। और जिस दिन ऐसा हो जाए, उसी दिन आप तीसरी आंख को खोलने में समर्थ हो सकते है।
तिलक के साथ जुड़ी हुई साधनाएं थीं कि पूरे शरीर को भूल जाओ, सिर्फ तिलक मात्र की जगह याद रह जाए। इसका अर्थ यह हुआ कि सारी चेतना सिकुड़कर फोकस्ड हो जाए तीसरी आंख पर और तीसरी आंख के खोलने की जो कुंजी है -
वह फोकस्ड कांशसनेस है। उस पर चेतना पूरी की पूरी इकट्ठी हो जाए और सारे शरीर से सिकुड़कर उस छोटे से
स्थान पर लग जाए। बस, यही थोड़े मे वैज्ञानिक कारण है |||
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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