दुर्बल और शारीरिक रूप से अक्षम व्यक्ति को सताना सबसे बडा पाप है। मंथरा विकलांग थी जिसे देखकर लोग व्यंग करते थे। व्यंग से उसकी पीडा बढ जाती थी और उक्त व्यक्ति के प्रति उसके मन में दुर्भावना का उदय हो जाता था।
अयोध्या में सब कुछ भगवान की इच्छा से ही हो रहा था। राजगद्दी की घोषणा सुनते ही देवलोक में उदासी छा गई। सबने देवी सरस्वती की प्रार्थना किया कि वह कैकेई और मंथरा की बुद्धि उल्टी कर दें ताकि भगवान राजगद्दी पर बै ने नहीं पायें। देवी सरस्वती को देवताओं की यह बात समझ नहीं आई और उन्होंने व्यंग भी किया। लेकिन बाद में सबने भगवान के धरती पर जाने का हेतु बताया तो उन्होंने देवताओं के अनुसार ही कार्य किया। बुद्धि भ्रष्ट होते ही मंथरा ने कैकेई को भ्रमित कर दशरथ के पास थाती रूप में छोडे गये दो वरदान मांगने को कहा। कैकेईने राम का वनवास और भरत को राज तिलक मांगा। पूरे अयोध्या की खुशी छिन गई और राम वन को चले गये।