प्रेम बहुत शक्तिशाली संजीवनी है; प्रेम से अधिक कुछ भी गहरा नहीं जाता। यह सिर्फ शरीर का ही उपचार नहीं करता, सिर्फ मन का ही नहीं, बल्कि आत्मा का भी उपचार करता है। यदि कोई प्रेम कर सके तो उसके सभी घाव विदा हो जाएंगे। तब तुम पूर्ण हो जाते हो--और पूर्ण होना पवित्र होना है। जब तक कि तुम पूर्ण नहीं हो, तुम पवित्र नहीं हो। शारीरिक स्वास्थ्य सतही घटना है। यह दवाई के द्वारा भी सकता है, यह विज्ञान के द्वारा भी हो सकता है। लेकिन किसी का आत्यंतिक मर्म प्रेम से ही स्वस्थ हो सकता है। वे जो प्रेम का रहस्य जानते हैं वे जीवन का महानतम रहस्य जानते हैं। उनके लिए कोई दुख नहीं बचता, कोई बुढ़ापा नहीं, कोई मृत्यु नहीं। निश्चित ही शरीर बूढ़ा होगा और शरीर मरेगा, लेकिन प्रेम यह सत्य तुम पर प्रगट करता है कि तुम शरीर नहीं हो। तुम शुद्ध चेतना हो, तुम्हारा कोई जन्म नहीं है, कोई मृत्यु नहीं है। और उस शुद्ध चेतना में जीना जीवन की संगति में जीना है। जीवन की संगति में जीने का उप-उत्पाद आनंद है|