बनठन कर रहनेवाले व्यक्ति को हिन्दी में बांका कहा जाता है.अर्थात बांका जो भी होगा वह सजीला भी होगा, कोई भी व्यक्ति या तो पैदाइशी सुंदर होता है या बनाव-श्रृंगार से सजीला बनता है, जब सजीले सलोनेपन की बात आती है तो कृष्ण की छवि ही मन में उभरती है | कृष्ण जी का एक नाम बांकेबिहारी है |
श्रीकृष्ण हर मुद्रा में बांके बिहारी नहीं कहे जाते बल्कि होठों पर बांसुरी लगाए, कदम्ब के वृक्ष से कमर टिकाए हुए, एक पैर में दूसरे को फंसाए हुए, तीन कोण पर झुकी हुई मुद्रा में ही उन्हें बांकेबिहारी कहा जाता है | भगवान तीन जगह से टेढ़े है.होठ,कमर और पैर. इसलिए उन्हें त्रिभंगी भी कहा जाता है ,भगवान श्री कृष्ण तीन जगह से क्यों टेढ़े है इसका सम्बन्ध उनकी जन्म कथा से है |
जब गोकुल में भगवान के जन्म का पता चला तो सारे ग्वाल -बाल नन्द बाबा के घर बधाईयाँ ले-लेकर आये, नन्द बाबा की दो बहनें थी, नन्दा और सुनंदा, जो लाला के जन्म से पहले ही आई हुई थी, जब बाल कृष्ण के जन्म को दो तीन घंटे हो गए तो सुनन्दा जी ने यशोदा जी से कहा - भाभी ! लाला को जन्म लिए इतनी देर हो गई, अब तक लाला को आपने दूध नहीं पिलाया |
तब यशोदा जी ने कहा - हाँ बहिन! आप ठीक कह रही हो |
सुनन्दा जी बोली - भाभी! मै प्रसूतिका गृह के बाहर खड़ी हो जाती हूँ , किसी को भी अन्दर नहीं आने दूँगी, आप लाला को दूध पिला दीजिये| इतना कहकर सुनंदा जी प्रसूतिका गृह के बाहर खड़ी हो गई |
अब यशोदा जी जैसे ही बाल कृष्ण को अपनी गोद में उठाने लगी, तो बाल कृष्ण इतने कोमल थे कि यशोदा जी की उगलियाँ उन्हें चुभी, यशोदा जी ने बहुत प्रयास किया, पर उन्हें यही लगा कि लल्ला इतना कोमल है कि मै इसे गोद में उठाऊँगी तो इसे मेरी उगलियाँ चुभ जायेगी | अब माता यशोदा जी ने लाला को तो पलग पर ही लिटा दिया और स्वयं टेढ़ी होकर लाला को दूध पिलाने लगी |
भगवान ने एक घूँट दूध पिया, दो घूँट दूध पिया, जैसे ही तीसरा घूँट पीने लगे, तो बाहर खड़ी सुनंदा जी ने सोचा बड़ी देर हो गई अब तो लाला ने दूध पी लिया होगा और जैसे ही उन्होंने खिडकी से अन्दर झाँका तो तुरंत बोल पड़ी, भाभी! लाला को प्रथम बार टेढ़े होकर दूध मत पिलाओ,जितने घूँट दूध ये पिएगा उतनी जगह से टेढ़ा हो जायेगा |
इतना सुनते ही यशोदा जी झट हट गई, तब तक् बाल कृष्ण ने तीसरे घूँट दूध भी गटक लिया, तीन घूँट दूध पीने के कारण कृष्ण तीन जगह से टेढे हो गए अर्थात
"बाँके" और भगवान के जन्म कुंडली का नाम "बिहारी" था इस तरह बाँके बिहारी श्री कृष्ण का एक नाम बाँके बिहारी हुआ
अच्छा इसके अलावा एक बात और दास का छोटा सा प्रयास,
संस्कृत में भङ्ग का मतलब भी टेढ़, तिरछा, मोड़ा हुआ, सर्पिल, घुमावदार आदि ही होता है, गौर करें भंगिमा शब्द पर. हाव-भाव के लिए नाटक या नृत्य में अक्सर भंगिमाएं बनाई जाती हैं, चेहरे पर विभिन्न हाव-भाव दर्शाने के लिए आंखों, होठों की वक्रगति से ही विभिन्न मुद्राएं बनाई जाती हैं जो भंगिमा कहलाती हैं, इसी में बांकी चितवन या तिरछी चितवन को याद किया जा सकता है जिसका अर्थ ही चाहत भरी तिरछी नज़र होता है, श्रीकृष्ण की बांकेबिहारी वाली मुद्रा को इसीलिए त्रिभंगी मुद्रा भी कहते हैं |
लेकिन हमारे बाँके बिहारी जी के कहने ही क्या है , इनकी तो हर एक अदा टेढ़ी है तेरा टेढा रे मुकुट, तेरी टेढ़ी रे अदा हमें तेरा दीवाना बना दिया इस बाँके का तो सब कुछ बांका है-
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बाँके है नंद बाबा, और यशोमती, बांकी घड़ी जन्मे है बिहारी,
बाँके कन्हैया के बाँके ही भ्रात लड़ाके बड़े हलमुषलधारी
बांकी मिली दुल्हिन जग वन्दिनी और बाँके गोपाल के बाँके पुजारी
भक्तन दर्शन देन के कारण झाँकी झरोखा में बाँके बिहारी
नंदबाबा और यशोदा जी भी टेढ़ी है, बाल कृष्ण का जन्म ही हो गया उन्हें पता ही नहीं , जन्म भी श्री कृष्ण का हुआ, तो रात को १२ बजे , उनके भाई बलदाऊ जी, जरा-सी बात पर ही हल मूशर उठा लेते है , और दुल्हन यानि राधा रानी वे भी बांकी है दुनिया कृष्ण के चरण दबाती है , पर हमारी राधा रानी जी, कृष्ण से ही चरण दबवाती है , और उनके पुजारी भी बाँके है, वृंदावन में भक्त तो दर्शन करने जाते है, और पुजारी जी बार-बार पर्दा लगा देते है तो हुआ न उस बाँके का सब कुछ बांका ।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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