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माँ दुर्गा

 

दुर्गा दैत्ये महाविघ्ने भवबन्धे कुकर्मणि
शोके दुःखे नरके यम दण्डे जन्मनि ।।
महाभये रोगे शब्दोऽयं हन्तृवाचकः
  
राक्षसी भय मेँ , सांसारिक मोहमाया मेँ , कुत्सित कर्म मेँ शोक ,दुःख , नरक , यमराज द्वारा निर्धारित दण्ड मेँ , जन्म ,मरण , महाभय मेँ तथा रोगो मेँ दुर्गा शब्द के स्मरण मात्र से मुक्ति मिल जाती है ।
   
द - दैत्य नाशार्थ वचनोँदकारः परिकीर्तितः , 
उ - उकारो विघ्ननाशस्य वाचको वेद सम्मतः , 
रः -रेफो रोगन्ध वचनोँ , 
ग - गश्च पापन्धः वाचकः 
आ - भय शत्रुघ्न वचनश्चाकारः परिकीर्तितः ।

-> दैत्यो का नाश करना ।
-> विघ्नो का नाश करने वाला ।
 -> रोंगो का नाश करने वाला ।
-> पापो का नाश करने वाला ।
 -> भय और शत्रुओँ का नाश करने वाले पञ्चाक्षर अलग अलग कार्यो को करते हैँ ।
इनके सम्मेलन से ही " दुर्गा " शब्द बना है ।
अतः हर प्रकार के क्लेशोँ को नाश करने वाला तथा सकल सुख सम्पत्ति प्रदान करने वाला यह नाम विश्व के प्राणियोँ का कल्याण करने वाला है ।
दुर्गा तो जगत माता हैँ ।
"
पुत्र कुपुत्र जायते माता कुमाता भवति "
अतः माँ अपने पुत्रो का सदैव कल्याण ही करती है ।।
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