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रूपाकृति

 

हवाएं हैं, सूरज है, पृथ्वी है, सबकुछ है मैं कहां हूं? इन सबका अदभुत जोड़ है, इन सबका एक क्रास पॉइंट है। इन सबसे मिल कर एक रूपाकृति है। उस रूपाकृति को यह भ्रम है कि मैं हूं।

  • एक भिक्षु था, नागसेन। एक बार सम्राट मिलिंद ने उसे निमंत्रण भेजा था। निमंत्रण लेकर सम्राट का दूत गया और कहा कि भिक्षु नागसेन! सम्राट ने निमंत्रण भेजा है। आपके स्वागत के लिए हम तैयार हैं। आप राजधानी आएं। तो उस भिक्षु नागसेन ने कहा कि आऊंगा जरूर, निमंत्रण स्वीकार। लेकिन सम्राट को कह देना कि भिक्षु नागसेन जैसा कोई व्यक्ति है नहीं। ऐसा कोई व्यक्ति है नहीं
    राजदूत तो चौंका, फिर आएगा कौन, फिर निमंत्रण किसको स्वीकार है? लेकिन कुछ कहना उसने उचित न समझा। जाकर निवेदन कर दिया सम्राट को। सम्राट भी हैरान हुआ। लेकिन प्रतीक्षा करें, आएगा भिक्षु तो पूछ लेंगे कि क्या था उसका अर्थ?
    फिर भिक्षु को लेने रथ चला गया। फिर स्वर्णरथ पर बैठ कर वह भिक्षु चला आया। वह कमजोर भिक्षु न रहा होगा कि कहता कि नहीं, सोने को हम न छुएंगे। कमजोर भिक्षु होता तो कहता कि नहीं सोने को हम न छुएंगे, सोना तो मिट्टी है। लेकिन बड़ा मजा यह है कि सोने को मिट्टी भी कहता और छूने में डरता भी है!
    नहीं, वह सचमुच भिक्षु रहा होगा अदभुत। उसको सोना मिट्टी ही रहा होगा। उसके बाद बैठ गया शान से वह उस सोने के रथ पर। लेने वालों ने सोचा भी था कि शायद भिक्षु कहेगा कि सोने का रथ! नहीं नहीं, मैं नहीं बैठता। उन्हें पता न था कि यह सब कमजोर भिक्षुओं की आदतें हैं, कि सोने का रथ मैं नहीं बैठता! सोने से जिनको बहुत डर है कि कहीं सोना पकड़ न ले, वे सोने से भागते हैं, भाग सकते हैं।
  • वह बैठ गया रथ पर, चल पड़ा रथ। आ गई राजधानी, सम्राट नगर के द्वार पर लेने आया था। सम्राट ने कहा कि भिक्षु नागसेन! स्वागत करते हैं नगर में। वह हंसने लगा भिक्षु। उसने कहा स्वागत करें, स्वागत स्वीकार, लेकिन भिक्षु नागसेन जैसा कोई है नहीं। सम्राट ने कहा फिर वही बात! हम तो सोचते थे महल तक ले चलें फिर पूछेंगे। आपने महल के द्वार पर ही बात उठा दी है तो हम पूछ लें कि क्या कहते हैं आप? भिक्षु नागसेन नहीं है तो फिर आप कौन हैं?
    भिक्षु उतर आया रथ से और कहने लगा कि महाराज! यह रथ है? महाराज ने कहा रथ है। भिक्षु ने कहा. घोड़े छोड़ दिए जाएं रथ से। घोड़े छोड़ दिए गए और वह भिक्षु कहने लगा ये घोड़े रथ हैं? महाराज ने कहा नहीं, घोड़े रथ नहीं हैं। घोड़ों को विदा कर दो। चाक निकलवा लिए रथ के और कहने लगा भिक्षु कि ये रथ हैं? महाराज ने कहा नहीं, ये तो चक्के हैं, रथ कहां! कहा. चक्कों को अलग कर दो!
    फिर एक एक अंग निकलने लगा उस रथ का और वह पूछने लगा यह है रथ, यह है रथ, यह है रथ? और महाराज कहने लगे नहीं नहीं, यह रथ नहीं है, यह रथ नहीं है! फिर तो सारा रथ ही निकल गया और वहां शून्य रह गया, वहां कुछ भी न बचा। और तब वह पूछने लगा फिर रथ कहां है? रथ था, और मैंने एक एक चीज पूछ ली और आप कहने लगे नहीं, यह तो चाक है, नहीं, यह तो डंडा है, नहीं, यह तो यह है, नहीं, ये तो घोड़े हैं; और अब सब चीजें चली गईं जो रथ नहीं थीं! रथ कहां है? रथ बचना था पीछे? रथ कहां गया? वह मिलिंद भी मुश्किल में पड़ गया। वह भिक्षु कहने लगा रथ नहीं था। रथ था एक जोड़। रथ था एक संज्ञा, एक रूपाकृति।

वह भिक्षु नागसेन कहने लगा: मैं भी नहीं हूं हूं अनंत की शक्तियों का एक जोड़। एक रूपाकृति उठती है, लीन हो जाती है, उठती है, लीन हो जाती है। एक लहर बनती है, बिखर जाती है। नहीं हूं मैं, वैसा ही हूं जैसा रथ था, वैसा ही नहीं हूं जैसा अब रथ नहीं है।

खींच लें सूरज की किरणें, खींच लें पृथ्वी का रस, खींच लें हवाओं की ऊर्जा, खींच लें चेतना के सागर से आई हुई आत्मा फिर कहां हूं मैं? हूं एक जोड़, हूं एक रथ, है बहुत कुछ जो काट गया है एक किनारे पर आकर; एक बिंदु पर बहुत रेखाएं कट गई हैं और एक बिंदु मालूम पड़ने लगा है जहां बिंदु नहीं है, सिर्फ रेखाओं की कटान है। एक रेखा खींची गई, दूसरी, तीसरी, चौथी, हजार रेखाएं खींची गईं तो बीच में एक बिंदु मालूम पड़ने लगा है। जहां—जहां रेखाएं कट गई हैं वहां बिंदु बन गया है। बिंदु वहां है नहीं, सिर्फ रेखाओं का क्रास पॉइंट। दो रेखाएं कट गई हैं और बिंदु मालूम हो रहा है, बिंदु वहां है नहीं। दो रेखाओं की कटान, एक चौरस्ता है, बहुत से रास्ते कट गए हैं और एक चौरस्ता बन गया है। चौरस्ता कहीं है? चार रस्ते कटते हैं, उस जगह को हम चौरस्ता कहते हैं। चौरस्ता कहीं भी नहीं है।

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Posted Comments
 
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।"
Posted By:  संतोष ठाकुर
 
"om namh shivay..."
Posted By:  krishna
 
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye"
Posted By:  vikaskrishnadas
 
"वास्तु टिप्स बताएँ ? "
Posted By:  VAKEEL TAMRE
 
""jai maa laxmiji""
Posted By:  Tribhuwan Agrasen
 
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है"
Posted By:  ओम प्रकाश तिवारी
 
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