ठाकुर एक सम्मान सूचक शब्द है, जो परंपरा में नाम के आगे और पीछे दोनों ही रूपों में उपयोग किया जाता है। शब्दकोश में इसे ठाकुर लिखा गया है, जो देवता का पर्याय है। ब्राह्मणों के लिए भी इसका उपयोग किया गया है। अनंत संहिता में श्री दामनामा गोपाल: श्रीमान सुंदर ठाकुर: का उपयोग भी किया गया है, जो भगवान कृष्ण संदर्भ में है। इसलिए विष्णु के अवतार की देव मूर्ति को ठाकुर कहते हैं। उच्च वर्ग के क्षत्रिय आदि की प्राकृत उपाधि ठाकुर भी इसी से निकली है। किसी भी प्रसिद्ध व्यक्ति को ठाकुर या ठक्कुर कहा जा सकता है।
इन्हीं विशेषताओं और संदर्भों के रहते भगवान कृष्ण के लिए भक्त ठाकुरजी संबोधन का उपयोग करते हैं। विशेषकर श्री वल्लभाचार्यजी द्वारा स्थापित पुष्टिमार्गी संप्रदाय के अनुयायी भगवान कृष्ण के लिए ठाकुरजी संबोधन देते हैं। पुष्टिमार्गीय संप्रदाय में श्रीनाथजी के विशेष विग्रह के साथ
कृष्ण भक्ति की जाती है। नाथद्वारा इनका प्रमुख केंद्र है। यहां के मूल मंदिर में कृष्ण की पूजा ठाकुरजी की पूजा ही कहलाती है। यहां तक कि उनका मंदिर भी हवेली कहा जाता है। इसी संप्रदाय के देशभर में स्थित अन्य मंदिरों में भी भगवान को ठाकुरजी कहने का परंपरा है।
विष्णु अवतार है दोनो की उपासना करनी चहिए
क्योकि गजेन्द्रमोक्ष का श्लोक है
ऐकेन कृष्णस्य कृतः प्रणामो
दशाशमेध
भृथेनतुल्या