रामायण काल में पक्षियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। एक और जहां कौए के आकार के काक भुशुण्डी की चर्चा मिलती है तो दूसरी ओर देव पक्षी गरूड़ और अरुण का उल्लेख भी मिलता है। गरूढ़ ने ही श्रीराम को नागपाश मुक्त कराया था। इसके बाद सम्पाती और जटायु का विशेष उल्लेख मिलता है। जटायु को श्रीराम की राह में शहीद होने वाला पहला सैनिक माना जाता है।
लोमश ऋषि के शाप के चलते काकभुशुण्डि कौवा बन गए थे। लोमश ऋषि ने शाप से मुक्त होने के लिए उन्हें राम मंत्र और इच्छामृत्यु का वरदान दिया। कौवे के रूप में ही उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन व्यतीत किया। वाल्मीकि से पहले ही काकभुशुण्डि ने रामायण गरूड़ को सुना दी थी।
इससे पूर्व हनुमानजी ने संपूर्ण रामायण पाठ लिखकर समुद्र में फेंक दी थी। वाल्मीकि श्रीराम के समकालीन थे और उन्होंने रामायण तब लिखी, जब रावण-वध के बाद राम का राज्याभिषेक हो चुका था|
पहला रहस्य
सम्पाती और जटायु
कौन थे?
राम के काल में सम्पाती और जटायु नाम के दो गरूड़ थे। ये दोनों ही देव पक्षी अरुण के पुत्र थे। दरअसल, प्रजापति कश्यप की पत्नी विनता के दो पुत्र हुए- गरूड़ और अरुण। गरूड़जी विष्णु की शरण में चले गए और अरुणजी सूर्य के सारथी हुए। सम्पाती और जटायु इन्हीं अरुण के पुत्र थे।
कहां रहते थे जटायु :- पुराणों के अनुसार सम्पाती और जटायु दो गरुढ़ बंधु थे। सम्पाती बड़ा था और जटायु छोटा। ये दोनों विंध्याचल पर्वत की तलहटी में रहने वाले निशाकर ऋषि की सेवा करते थे और संपूर्ण दंडकारण्य क्षेत्र विचरण करते रहते थे। एक ऐसा समय था जब मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ में गिद्ध और गरुड़ पक्षियों की संख्या अधिक थी लेकिन अब नहीं रही।
दूसरा रहस्य
जटायु और सम्पाती की होड़ :- बचपन में सम्पाती और जटायु ने सूर्य-मंडल को स्पर्श करने के उद्देश्य से लंबी उड़ान भरी। सूर्य के असह्य तेज से व्याकुल होकर जटायु जलने लगे तब सम्पाति ने उन्हें अपने पंख ने नीचे सुरक्षित कर लिया, लेकिन सूर्य के निकट पहुंचने पर सूर्य के ताप से सम्पाती के पंख जल गए और वे समुद्र तट पर गिरकर चेतनाशून्य हो गए।
चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्री सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया।
तीसरा रहस्य
राजा दशरथ के मित्र थे जटायु :- जब जटायु नासिक के पंचवटी में रहते थे तब एक दिन आखेट के समय महाराज दशरथ से उनकी मुलाकात हुई और तभी से वे और दशरथ मित्र बन गए। वनवास के समय जब भगवान श्रीराम पंचवटी में पर्णकुटी बनाकर रहने लगे, तब पहली बार जटायु से उनका परिचय हुआ।
चौथा रहस्य
जटायु का बलिदान :- रावण जब सीताजी का हरण कर उन्हें लेकर आकाश में उड़ गया तब सीताजी का विलाप सुनकर जटायु ने रावण को रोकने का प्रयास किया लेकिन अन्त में रावण ने तलवार से उनके पंख काट डाले। जटायु मरणासन्न होकर भूमि पर गिर पड़े और रावण सीताजी को लेकर लंका की ओर चला गया।
सीता की खोज करते हुए राम जब रास्ते से गुजर रहे थे तो उन्हें घायल अवस्था में जटायु मिले। जटायु मरणासन्न थे। जटायु ने राम को पूरी कहानी सुनाई और यह भी बताया कि रावण किस दिशा में गया है। जटायु के मरने के बाद राम ने उसका वहीं अंतिम संस्कार और पिंडदान किया।
छत्तीसगढ़ के दंडकारण्य में जटायु का मंदिर है। मान्यता अनुसार यह वह स्थान है जब सीता का अपहरण कर रावण पुष्पक विमान से लंका जा रहा था, तो सबसे पहले जटायु ने ही रावण को रोका था। राम की राह में जटायु पहले शहीद थे। स्थानीय मान्यता के मुताबिक दंडकारण्य के आकाश में ही रावण और जटायु का युद्ध हुआ था और जटायु के कुछ अंग दंडकारण्य में आ गिरे थे। जटायु की राम से पहली मुलाकाता पंचवटी (नासिक के पास) हुई थी जहां वे रहते थे। लेकिन उनकी मृत्यु दंडकारण्य में हुई।
पांचवां रहस्य
सम्पाती ने सैंकड़ों किलोमीटर दूर से माता सीता को देख लिया था :- जामवंत, अंगद, हनुमान आदि जब सीता माता को ढूंढ़ने जा रहे थे तब मार्ग में उन्हें बिना पंख का विशालकाय पक्षी सम्पाति नजर आया, जो उन्हें खाना चाहता था लेकिन जामवंत ने उस पक्षी को रामव्यथा सुनाई और अंगद आदि ने उन्हें उनके भाई जटायु की मृत्यु का समाचार दिया। यह समाचार सुनकर सम्पाती दुखी हो गया।
सम्पाती ने तब उन्हें बताया कि हां मैंने भी रावण को सीता माता को ले जाते हुए देखा। दरअसल, जटायु के बाद रास्ते में सम्पाती के पुत्र सुपार्श्व ने सीता को ले जा रहे रावण को रोका था और उससे युद्ध के लिए तैयार हो गया। किंतु रावण उसे बातों में उलझाकर वहां से बचकर निकल आया। हुआ यूं था कि पंख जल जाने के कारण संपाती उड़ने में असमर्थ था, इसलिए सुपार्श्व उनके लिए भोजन जुटाता था। एक शाम सुपार्श्व बिना भोजन लिए अपने पिता के पास पहुंचा तो भूखे संपाती ने मांस न लाने का कारण पूछा तो सुपार्श्व ने बतलाया- कोई काला राक्षस सुंदर नारी को लिए चला जा रहा था। वह स्त्री हे राम, हे लक्ष्मण कहकर विलाप कर रही थी। यह देखने में मैं इतना उलझ गया कि मांस लाने का ध्यान नहीं रहा।
अर्थात सम्पाती ने तब अंगद को रावण द्वारा सीताहरण की पुष्टि की। सम्पाती रावण से इसलिये नहीं लड़ सका क्योंकि वह बहुत कमजोर हो चला था क्योंकि सूर्य के ताप से उनके पंख जल गए थे। चन्द्रमा नामक मुनि ने उन पर दया करके उनका उपचार किया और त्रेता में श्री सीताजी की खोज करने वाले वानरों के दर्शन से पुन: उनके पंख जमने का आशीर्वाद दिया था।
सम्पाती ने दिव्य वानरों अंगद और हनुमान के दर्शन करके खुद में चेतना शक्ति का अनुभव किया और अंतत: उन्होंने अंगद के निवेदन पर अपनी दूरदृष्टि से देखकर बताया कि सीमा माता अशोक वाटिका में सुरक्षित बैठी हैं। सम्पाति ने ही वानरों को लंकापुरी जाने के लिए प्रेरित और उत्साहित किया था। इस प्रकार रामकथा में सम्पाती ने भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और अमर हो गए।
छठा रहस्य
जटायु का तप स्थल जटाशंकर :- मध्यप्रदेश के देवास जिले की तहसील बागली में जटाशंकर नाम का एक स्थान है जिसके बारे में कहा जाता है कि जटायु वहां तपस्या करते थे। कुछ लोगों के अनुसार यह ऋषियों की तपोभूमि भी है और सबमें बड़ी खासियत की यहां स्थित पहाड़ के ऊपर से शिवलिंग पर अनवरत जलधारा बहती हुई नीचे तक जाती है जिसे देखकर लगता है कि शिव की जटाओं से धारा बह रही है। संभवत: इसी कारण इसका नाम जटा शंकर पड़ा होगा। बागली के पास ही गिदिया खोह है जहां कभी हजारों की संख्या में गिद्ध रहा करते थे।
दुर्गम जंगल से घिरा यह क्षेत्र हमें मंत्र मुग्ध कर देता है। यहां पहुंचते ही सच में ही लगता है कि हम किसी ऋषि की तपोभूमि में आ गए हैं। किंवदंती हैं कि जटायु के बाद यह स्थल कई ऋषियों का तप स्थल रहता आया है। बागली के बियाबान जंगल में बसे इस स्थान पर वैसे तो कम ही लोग आते-जाते हैं लेकिन यहां हर श्रावण मास में भजन, पूजन और भंडारे का आयोजन किया जाता है।
इस मंदिर के केशवदास फरयाली बाबा के शिष्य बद्रीदास महाराज ने यहां की गद्दी संभाल रखी है। केशवदास महाराज की यहां पर समाधी भी है। यहां के स्थानीय निवासी सुभाषसिंह और मांगीलाल के अनुसार इस मंदिर का शिवलिंग प्राचीन काल से विद्यमान है। यहां स्थित पहाड़ का झरना बारह माह ही इसी तरह निरंतर बहता रहता है। न कम होता है और न ज्यादा। किंवदंती हैं भगवान राम के समय से यह झरना बह रहा है, कहां से इसकी धारा फूटी है और इसकी थाह क्या है? यह किसी को पता नहीं। हमारे पूर्वजों से सुनते आए हैं कि यह बहुत ही प्राचीन स्थान है।
सातवां रहस्य
जैन धर्मानुसार :- जैन धर्म अनुसार राम, सीता तथा लक्ष्मण दंडकारण्य में थे। उन्होंने देखा- कुछ मुनि आकाश से नीचे उतरे। उन तीनों ने मुनियों को प्रणाम किया तथा उनका आतिथ्य किया। वहां पर बैठा हुआ एक गरूढ़ उनके चरणोदक में गिर पड़ा। साधुओं ने बताया कि पूर्वकाल में दंडक नामक एक राजा था किसी मुनि के संसर्ग से उसके मन में संन्यासी भाव उदित हुआ। उसके राज्य में एक परिव्राजक था। एक बार वह अंत:पुर में रानी से बातचीत कर रहा था राजा ने उसे देखा तो दुश्चरित्र जानकर उसके दोष से सभी श्रमणों को मरवा डाला।
एक श्रमण बाहर गया हुआ था। लौटने पर समाचार ज्ञात हुआ तो उसके शरीर से ऐसी क्रोधाग्नि निकली कि जिससे समस्त स्थान भस्म हो गया। राजा के नामानुसार इस स्थान का नाम दंडकारगय रखा गया। मुनियों ने उस दिव्य गरुड़ की सुरक्षा का भार सीता और राम को सौंप दिया। उसके पूर्व जन्म के विषय में बताकर उसे धर्मोपदेश भी दिया। रत्नाभ जटाएं हो जाने के कारण वह जटायु नाम से विख्यात हुआ।
Posted Comments |
" जीवन में उतारने वाली जानकारी देने के लिए धन्यवाद । कई लोग तो इस संबंध में कुछ जानते ही नहीं है । ऐसे लोगों के लिए यह अत्यन्त शिक्षा प्रद जानकारी है ।" |
Posted By: संतोष ठाकुर |
"om namh shivay..." |
Posted By: krishna |
"guruji mein shri balaji ki pooja karta hun krishna muje pyare lagte lekin fir mein kahi se ya mandir mein jata hun to lagta hai har bhagwan ko importance do aur ap muje mandir aur gar ki poja bidi bataye aur nakartmak vichar god ke parti na aaye" |
Posted By: vikaskrishnadas |
"वास्तु टिप्स बताएँ ? " |
Posted By: VAKEEL TAMRE |
""jai maa laxmiji"" |
Posted By: Tribhuwan Agrasen |
"यह बात बिल्कुल सत्य है कि जब तक हम अपने मन को निर्मल एवँ पबित्र नही करते तब तक कोई भी उपदेश ब्यर्थ है" |
Posted By: ओम प्रकाश तिवारी |
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