इतिहास और पुराण कहते हैं कि समाज निर्माण की दिशा में हमेशा विजय उनके ही हाथ लगी, जिनके पास साधन कम थे। श्रेष् व्यक्ति को अधिक साधन नहीं चाहिए। वह उन्हें अपने आसपास से ही ढूंढ लिया करता है।
राम ने युद्ध के लिए अयोध्या से सहायता नहीं मांगी। उन्होंने अपनी विजय के लिए वनों में रहने वाले उपकारी वनवासियों को खोज लिया और उन्हीं वनवासियों ने वन-वन भटकते राम को आवास दिया और आगे बढने का मार्ग भी दिखाया। शबरी न जाने कब से राम की प्रतीक्षा करती हुई उस भीलानी के पास राम को देने के लिए सिर्फ बेर ही थे, पर प्रेम इतना था कि वह जानती थी कि मेरे द्वार पर सिर्फ राम के सिवाए कोई और नहीं आएगा। हमें अपने आसपास की चीजों में ही अपना गौरव देखना चाहिए और उनका सम्मान करते हुए उन्हें अपनाना चाहिए। पश्चिमी दुनिया से जो भूल हुई है हम उसे क्यों दोहरा रहे हैं। क्योंकि पश्चिम के पास भौतिक साधनों की कमी नहीं है पर सबसे बडी जो कमी है कि उसके पास परिवार नहीं है, सिर्फ संशय है, दूरियां हैं ,अकेलापन है। उन्होंने रेखांकित किया कि भारत ही ऐसा देश है, जहां अपनेपन की संपदा भरपूर है। प्रत्येक परिस्थिति में अनथक श्रम करने का हौसला है। आखिर क्या नहीं है हमारे पास। जब भी दुनिया अपने लिए शांति और सुरक्षा के स्थाई समाधान खेजने निकलेगी ,जब भी पूरे संसार की एकता का सपना देखा जाएगा तब सिर्फ भारत की आध्यात्मिक दृष्टि ही काम आएगी और वे लोग काम आएंगे जो साधारण जन हैं, वनवासी हैं।