हिंदी विक्रमी सम्वत के अनुसार ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को अचला व अपरा एकादशी कहते हैं।पुराणों के अनुसार अचला एकादशी का व्रत करने से ब्रह्म हत्या, परनिंदा, भूत योनि जैसे पापों से छुटकारा मिल जाता है तथा विधिपूर्वक अचला एकादशी का व्रत करने से पुण्य, धन धान्य, ऐश्वर्य, वंश वृद्धि व समाज में यश मिलता है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है
अचला एकादशी व्रत विधि :
अचला एकादशी के दिन व्रती (व्रत करने वाला) प्रातः पवित्र जल में स्नान करके साफ वस्त्र धारण करें। अपने परिवार सहित पूजा घर में या मंदिर में भगवान विष्णु व लक्ष्मी जी की मूर्ति को चौकी पर स्थापित करें। तत्पश्चात गंगाजल पीकर आत्म शुद्धि करें। तिलक लगाए, रक्षा सूत्र बांधे और देसी घी का दीपक जलाएं। शंख और घंटी का पूजन अवश्य करें, क्योंकि यह भगवान विष्णु को बहुत प्रिय है। अचला एकादशी व्रत करने का संकल्प लें। इसके बाद विधिपूर्वक प्रभु का पूजन करें और दिन भर उपवास करें। रात को जागरण करें। दूसरे दिन व्रत का ब्राह्मण को भोजन कराकर उसे दान दक्षिणा देकर विदा करें और उसके बाद स्वयं भोजन करें।
अचला एकादशी व्रत की कथा :
प्राचीन काल में महिध्वज नामक धर्मात्मा राजा था। राजा का छोटा भाई ब्रजध्वज बड़ा ही अन्यायी, अधर्मी और क्रूर था। वह अपने बड़े भाई को अपना दुश्मन समझता था। एक दिन मौका देखकर ब्रजध्वज ने अपने बड़े भाई की हत्या कर दी व उसके मृत शरीर को जंगल में पीपल के वृक्ष के नीचे गाढ़ दिया। इसके बाद राजा की आत्मा उस पीपल में वास करने लगी। अचानक एक दिन धौम्य ऋषि उस पीपल के वृक्ष के नीचे से निकले।
उन्होंने तपोबल से प्रेत रूप में राजा की उपस्थिति और उसके जीवन वृतांत को समझ लिया। धौम्य ऋषि ने राजा के प्रेत को पीपल के वृक्ष से उतारकर परलोक विद्या का उपदेश दिया और प्रेत योनि से छुटकारा पाने के लिए अचला एकादशी का व्रत करने को कहा। अचला एकादशी व्रत रखने से राजा का प्रेत दिव्य शरीर धारण कर स्वर्गलोक को चला गया।
अचला एकादशी व्रत में इन बातों का ध्यान रखें -
- पूजन में चावल के स्थान पर तिल अर्पित करें।
- आलस्य का त्याग करें।
- अधिक से अधिक प्रभु का भजन करें।
- तुलसी दल चढ़ाकर भगवान को भोग लगाएं।
- रात्रि में जागरण करते हुए प्रभु श्री हरि के चरणों में विश्राम करें।