ज्ञान एवं भक्ति बाह्य दृष्टि से दो पक्ष दिखाई देते हैं, लेकिन वे एक ही हैं।
जब भगवान श्रीराम माता कौशल्या समक्ष प्रगट हुए तो वे उनके दर्शन कर अति अनुरागी हो गई। यह उनका भक्ति पक्ष है। लेकिन दूसरे ही क्षण वे सोचने लगी कि अनेकों ब्राह्मांडों का निर्माण करने वाला ईश्वर क्या मेरा पुत्र हो सकता है और वे ऐसी स्थिति में भगवान के दर्शन अपने हृदय में करने लगीं। यह उनके ज्ञान की अचेतावस्था है। ऐसी स्थिति में भगवान ने सोचा कि ऐसी स्थिति में उनकी लीला अधूरी हो जाएगी और उन्होंने कौशल्या मां का ध्यान बाहर लाने के लिए शिशु लीला का सहारा लिया। हमारे जीवन में भी ज्ञान ऐसा ही होना चाहिए जो हमें ईश्र्र्वर से जोडे और भक्ति के माध्यम से हम ईश्र्र्वर और उसकी व्यापक सृष्टि में सभी प्राणियों से अपना आत्मीय संबंध बनाए रखे। यही भक्ति है। कौशल्या को भगवान के सगुण एवं निर्गुण स्वरूपों के एक साथ दर्शन हुए।