Home » Article Collection » बांकेबिहारी का विहार

बांकेबिहारी का विहार

 

                                      बांकेबिहारी का विहार

 

वृंदावन श्यामा जू और श्रीकुंजविहारीका निज धाम है। यहां राधा-कृष्ण की प्रेमरस-धाराबहती रहती है। मान्यता है कि चिरयुवाप्रिय-प्रियतम श्रीधामवृंदावन में सदैव विहार में संलग्न रहते हैं। यहां निधिवनको समस्त वनों का राजा माना गया है, इसलिए इनको श्रीनिधि वनराज कहा जाता है। पंद्रहवींशताब्दी में सखी-संप्रदाय के प्रवर्तक संगीत सम्राट तानसेनके गुरु स्वामी हरिदासजब वृंदावन आए, तब उन्होंने निधिवनको अपनी साधनास्थलीबनाया।

किंवदंती है कि स्वामी हरिदासनिधिवनमें कुंजबिहारीको अपने संगीत से रिझाते हुए जब तानपूरे पर राग छेडते थे, तब राधा-कृष्ण प्रसन्न होकर रास रचाने लग जाते थे। यह रास-लीला उनके शिष्यों को नहीं दिखती थी। विहार पंचमी को लेकर कथा है कि अपने भतीजे और परमप्रिय शिष्य वी लविपुलजीके अनुरोध पर उनके जन्मदिवस मार्गशीर्ष-शुक्ल-पंचमी के दिन स्वामी जी ने जैसे ही तान छेडी, वैसे ही श्यामा-श्याम अवतरित हो गए। स्वामीजीने राधा जी से प्रार्थना की वे कुंजविहारीमें ऐसे समा जाएं, जैसे बादल में बिजली। स्वामी जी के आग्रह पर प्रियाजीअपने प्रियतम में समाहित हो गई। इस प्रकार युगल सरकार की सम्मिलित छवि बांकेबिहारीके रूप में मूर्तिमान हो गई और अगहन सुदी पंचमी (मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी) विहार पंचमी के नाम से प्रसिद्ध हो गई। इस बार यह 10दिसंबर को है।

कहा जाता है कि स्वामी हरिदासने अपने जीवनकाल में ही अपने भाई स्वामी जगन्नाथजीको दीक्षा देकर श्रीविहारीजीकी सेवा सौंप दी थी। ये श्रीनिधिवनराजमें ही रहते थे, लेकिन उनके वंशजों ने वर्तमान बिहारीपुरानामक स्थान पर एक मंदिर बनाकर उसमें श्रीबांकेबिहारीको स्थानांतरित किया। ऐसा सुना जाता है कि विक्रम संवत् 1779(सन् 1722ई.) के लगभग उसका पुनर्निर्माण किया गया। मंदिर का वर्तमान स्वरूप सन् 1864ई. में तैयार हुआ था।

निधिवनमें श्यामा-श्यामसुंदर के नित्य विहार के विषय में स्वामी हरिदासजीद्वारा रचित काव्य ग्रंथ केलिमाल पर्याप्त प्रकाश डालता है। 110पदों वाला यह काव्य वस्तुत:स्वामीजीके द्वारा समय-समय पर गाये गए ध्रुपदोंका संकलन है, जिनमें कुंजबिहारीके नित्य विहार का अतिसूक्ष्मएवं गूढ भावांकनहै।

Copyright © MyGuru.in. All Rights Reserved.
Site By rpgwebsolutions.com