चित्रकूट में स्फटिक शिला वर्षो से लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है। मान्यता है कि इस पर बैठकर ही श्रीराम ने रावण से युद्ध करने से पहले शक्ति पूजा की थी. एक बार चुनिकुसुम सुहाए, मधुकर भूषण राम बनाये। सीतहिंपहिरायेप्रभु सादर, बैठे फटिक शिला पर सुंदर। तुलसी दास जी ने ये पंक्तियां श्रीरामचरितमानस में लिखी थीं। ये पक्तियांवास्तव में चित्रकूट में परांबाजगदीश्वरीजगदाराध्याश्रीसीतारूपिणीमहामाया की भाव-भक्ति भरी उस पूजा की ओर इंगित करती हैं, जिसके बारे में मान्यता है कि अखिल बह्मंाडनायक श्रीराम जी ने स्फटिक शिला पर बैठकर की थी। युगों से चित्रकूट आने वाली लाखों श्रद्धालु मंदाकिनी के तीर पर विशालकाय अर्जुन के वृक्ष की छाया से आच्छादित इस विशालकाय चित्रण पर अपना शीश नवातेहैं। आदि कवि वाल्मीकि हों, तुलसी हों या फिर कविवरनिराला, सभी ने चित्रकूट में राम की शक्ति पूजा को व्याख्यायितकिया है। ग्रंथों में उल्लेख है कि श्रीराम ने अपने जीवन काल में दो विशेष आराधनाएंकी थीं, जिनके विशेष आराधना स्थल चित्रकूट और रामेश्वरमरहे। तपस्थलीमाने जाने वाले चित्रकूट के प्रमुख संत स्वामी सनकादिककहते हैं, वास्तव में चित्रकूट सुखविलासहै। यहां श्रीराम अपने पूर्णतमपरमात्मा के स्वरूप में विद्यमान हैं। चित्रकूट में उन्होंने मां भगवती सीता के स्वरूप में मां भगवती की आराधना की है। महाकवि कालिदासव निराला जी के साथ ही देवी भागवत जैसे ग्रंथ भी इस बात की ताकीद करते हैं। वे कविवरनिराला रचित अनामिका को अपने सुमधुर कंठ से गाते हुए कहते हैं - मात दशभुजाविश्व ज्योति मैं हूं, आश्रित/ हो विद्ध शक्ति में है खल महिषासुर मर्दित / जन रंजन चरण कमल तल / धन्य सिंह गर्जित/यह मेरा प्रतीक मात समझा इंगित/ मै, सिंह इसी भाव से करूंगा अभिनंदन.। सनकादिककहते है कि चित्रकूट वह तीर्थ है, जहां प्रभु श्रीराम ने दशानन के संहार के लिए साढे ग्यारह साल मां भगवती की तपस्या की थी।