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उत्तर प्रदेश के तीर्थराज प्रयाग (इलाहबाद) स्थित ललिता देवी शक्तिपीठ प्रमुख 51 शक्तिपीठों में से एक हैं. पुरानों में वर्णित कथाओं के अनुसार माता सती ने अपने पिता प्रजापति दक्ष के यज्ञ में योगाग्नि द्वारा जब अपने शरीर को भस्मीभूत कर लिया, तब भगवान शंकर अत्यंत क्रोधित हो गए और माता सती के निर्जीव देह को अपने कंधे पर लेकर ब्रह्माण्ड भ्रमण के साथ साथ तांडव नृत्य करने लगे. तब सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड को इस भयंकर प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने माता सती के उस मृत शरीर को अपने सुदर्शन चक्र से 51 भागों में विभक्त कर दिया और तीर्थराज प्रयाग ही वह परम पावन भूमि है जहां माता सती के हाथ की अंगुली गिरी थी. माता सती यहां ललिता देवी शक्तिपीठ रूप में जबकि भगवान भोलेनाथ यहां भव भैरव के रूप में प्रतिष्ठित हैं. प्रयाग में शक्तिपीठ होने के कारण प्रयाग को तीर्थराज के आलावा पीठराज भी कहा जाता है. नवरात्र के सुअवसर पर यहां भव्य मेले का आयोजन किया जाता है, जिसमें हज़ारों श्रद्धालु श्रद्धा और हर्षोल्लासपूर्वक भाग लेते हैं. शक्तिपीठ होने के कारण मां ललिता देवी मंदिर में यूं तो हमेशा ही भक्तों का तांता लगा रहता है, परन्तु इन दिनों मां की पूजा-आराधना का कुछ विशेष ही महत्व होता है. |