|
||||||||
वाराणसी स्थित हिन्दुओं का पवित्र तीर्थस्थल श्री विशालाक्षी देवी प्रमुख 51 शक्तिपीठों में एक मानी जाती हैं. कहा जाता है जब भगवान शंकर वियोगी होकर सती की मृत शरीर को अपने कंधे पर रखकर इधर-उधर घूम रहे थे, तब भगवती का कर्ण कुण्डल इसी स्थान पर गिरा था. भैरव यहां काल भैरव के रूप में प्रतिष्ठित हैं. स्कन्द पुराण के काशीखण्ड में श्री विशालाक्षी को 9 गौरियों में से पांचवीं गौरी के रूप में दर्शाया गया है. इस पुराण में श्री विशालाक्षी के भवन को भगवान विश्वनाथ का विश्राम स्थल कहा गया है. विशालाक्षी देवी अपने लौकिक स्वरुप में गौर वर्ण की हैं तथा उनके दिव्य श्रीविग्रह से तपाए हुए सुवर्ण के समान कान्ति निकलती रहती है. भगवती अत्यंत सुन्दर और रूपवती हैं और वे सर्वदा षोडशवर्षीया दिखलाई देती है. पुराणों में देवी को गंगा स्नान के बाद धूप, दीप, सुगन्धित हार व मोतियों के आभूषण, नवीन वस्त्र आदि चढ़ाने का महत्व बताया गया है. आस्थावान भक्तों में मान्यता है कि देवी विशालाक्षी की श्रद्धापूर्वक पूजा-उपासना करने से सौंदर्य और धन की प्राप्ति होती है और यहां दान, जप और यज्ञ करने पर प्राणी को मोक्ष मिलता है. |