सिद्धि विनायक चतुर्थी | Siddhi Vinayaka Chaturthi 2011 (Vinayak Chaturthi Vrat Method) Ganesh Chaturthi Vrat Katha in Hindi
भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन सिद्धि विनायक व्रत किया जाता है. हिन्दू शास्त्रों के अनुसार वर्ष 2011, में यह व्रत 1 सितम्बर, गुरुवार के दिन किया जायेगा. इस व्रत के फल इस व्रत के अनुसार प्राप्त होते है. भगवान श्री गणेश को जीवन की विध्न-बाधाएं हटाने वाला कहा गया है. और श्री गणेश सभी कि मनोकामनाएं पूरी करते है. गणेशजी को सभी देवों में सबसे अधिक महत्व दिया गया है. कोई भी नया कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान श्री गणेश को याद किया जाता है.
विनायक चतुर्थी व्रत विधि (Vinayak Chaturthi Fast Method)
श्री गणेश का जन्म भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन हुआ था. इसलिये इनके जन्म दिवस को व्रत कर श्री गणेश जन्मोत्सव के रुप में मनाया जाता है. जिस वर्ष में यह व्रत रविवार और मंगलवार के दिन का होता है. उस वर्ष में इस व्रत को महाचतुर्थी व्रत कहा जाता है.
इस व्रत को करने की विधि भी श्री गणेश के अन्य व्रतों के समान ही सरल है. गणेश चतुर्थी व्रत प्रत्येक मास में कृ्ष्णपक्ष की चतुर्थी में किया जाता है,. पर इस व्रत की यह विशेषता है, कि यह व्रत सिद्धि विनायक श्री गणेश के जन्म दिवस के दिन किया जाता है. सभी 12 चतुर्थियों में माघ, श्रावण, भाद्रपद औरमार्गशीर्ष माह में पडने वाली चतुर्थी का व्रत करन विशेष कल्याणकारी रहता है.
व्रत के दिन उपवासक को प्रात:काल में जल्द उठना चाहिए. सूर्योदय से पूर्व उठकर, स्नान और अन्य नित्यकर्म कर, सारे घर को गंगाजल से शुद्ध कर लेना चाहिए. स्नान करने के लिये भी अगर सफेद तिलों के घोल को जल में मिलाकर स्नान किया जाता है. तो शुभ रहता है. प्रात: श्री गणेश की पूजा करने के बाद, दोपहर में गणेश के बीजमंत्र ऊँ गं गणपतये नम: का जाप करना चाहिए.
इसके पश्चात भगवान श्री गणेश धूप, दूर्वा, दीप, पुष्प, नैवेद्ध व जल आदि से पूजन करना चाहिए. और भगवान श्री गणेश को लाल वस्त्र धारण कराने चाहिए. अगर यह संभव न हों, तो लाल वस्त्र का दान करना चाहिए.
पूजा में घी से बने 21 लड्डूओं से पूजा करनी चाहिए. इसमें से दस अपने पास रख कर, शेष सामग्री और गणेश मूर्ति किसी ब्राह्मण को दान-दक्षिणा सहित दान कर देनी चाहिए.
विनायक चतुर्थी पर्व | Vinayaka Chaturthi Festival
विनायक चतुर्थी व्रत भगवान श्री गणेश का जन्म उत्सव का दिन है. यह दिन गणेशोत्सव के रुप में सारे विश्व में बडे हि हर्ष व श्रद्वा के साथ मनाया जाता है. भारत में इसकी धूम यूं तो सभी प्रदेशों में होती है. परन्तु विशेष रुप से यह महाराष्ट में किया जाता है. इस उत्सव को महाराष्ट का मुख्य पर्व भी कहा जा सकता है. लोग मौहल्लों, चौराहों पर गणेशजी की स्थापना करते है. आरती और भगवान श्री गणेश के जयकारों से सारा माहौळ गुंज रहा होता है. इस उत्सव का अंत अनंत चतुर्दशी के दिन श्री गणेश की मूर्ति समुद्र में विसर्जित करने के बाद होता है.
गणेश चतुर्थी व्रत कथा | Ganesh Chaturthi Vrat Story
श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है. कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकरऔर माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें. वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा. भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये. परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा?
इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी. और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है. परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है. इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता.
यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया. खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई. खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बा��क ने महादेव को विजयी बताया. यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई. और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व किचड में पडे रहने का श्राप दे दिया. बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें किसी द्वेष में ऎसा नहीं किया. बालक के क्षमा मांगने पर माता ने कहा की, यहां गणेश पूजन के लिये नाग कन्याएं आयेंगी, उनके कहे अनुसार तुम गणेश व्रत करो, ऎसा करने से तुम मुझे प्राप्त करोगें, यह कहकर माता, भगवान शिव के साथ कैलाश पर्वत पर चली गई.
ठिक एक वर्ष बाद उस स्थान पर नाग कन्याएं आईं. नाग कन्याओं से श्री गणेश के व्रत की विधि मालुम करने पर उस बालक ने 21 दिन लगातार गणेश जी का व्रत किया. उसकी श्रद्वा देखकर गणेश जी प्रसन्न हो गए. और श्री गणेश ने बालक को मनोवांछित फल मांगने के लिये कहा. बालक ने कहा की है विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए, कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वो यह देख प्रसन्न हों.
बालक को यह वरदान दे, श्री गणेश अन्तर्धान हो गए. बालक इसके बाद कैलाश पर्वत पर पहुंच गया. और अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई. उस दिन से पार्वती जी शिवजी से विमुख हो गई. देवी के रुष्ठ होने पर भगवान शंकर ने भी बालक के बताये अनुसार श्री गणेश का व्रत 21 दिनों तक किया. इसके प्रभाव से माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी. वह समाप्त होई.
यह व्रत विधि भगवन शंकर ने माता पार्वती को बताई. यह सुन माता पार्वती के मन में भी अपने पुत्रकार्तिकेय से मिलने की इच्छा जाग्रत हुई. माता ने भी 21 दिन तक श्री गणेश व्रत किया और दुर्वा, पुष्प और लड्डूओं से श्री गणेश जी का पूजन किया. व्रत के 21 वें दिन कार्तिकेय स्वयं पार्वती जी से आ मिलें. उस दिन से श्री गणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरी करने वाला व्रत माना जाता है.